परिचय
अकसर मसीह लोग जब पुराने नियम को पढ़ते हैं तो पुराने नियम के कुछ कठिन भागों / खण्डों / बातों को लेकर काफी असहज महसूस करते हैं। उन्हें बहुत सी बातें ठीक नहीं लगती हैं और वह इस विचार से जूझते हैं की पुराने नियम में / बाइबिल में यह सब बातें क्यों लिखी गयी हैं। अगर कुछ गैर मसीह लोगों की बात करें तो वह इन विषयों को लेकर बाइबिल, परमेश्वर, यीशु मसीह और ईसाई धर्म के बारे में अपशब्द, बुराई, ठट्टा, मज़ाक इत्यादि करने का खूब फ़ायदा उठाते हैं। नामधारी ईसाई और नास्तिक लोग इन बातों का हवाला देकर परमेश्वर के अस्तित्व पर सवाल भी उठाते हैं। हम पुराने नियम के कुछ कठिन भागों / खण्डों / बातों का सामना कैसे करें ?
इन्हें पढ़ते समय अगर हम कुछ बातों का / नियमों का ध्यान रखें तो हम इन कठिन भागों / खण्डों / बातों को आसानी से समझ सकेंगे और दूसरों को भी समझा पाएंगे। दो मुख्य मुद्दों को हम देखेंगे जिसपर हमारी समझ सही होनी चाहिए अगर हम पुराने नियम को ठीक से अध्ययन करना चाहते हैं।
- पुराने नियम में कठिन और असहज बातें और संदेहवादी सोच
- परमेश्वर का अपनी महिमा को लेकर स्व-केंद्रित होना
2. इसराइली संस्कृति / प्रथा / रहन-सहन / के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के मध्य में, उनके मनुषत्व की कमज़ोरियों के बावजूद, परमेश्वर उनका चुनाव करता है और अपने कार्य को उनके मध्य शुरू करता है। तो हम देखते हैं की इसराइली समाज में जो एक प्राचीन समाज था, परमेश्वर अपने आप को प्रकट करता है। परमेश्वर उनके कमजोरिओं से वाक़िफ़ है, परमेश्वर उनकी कमियों को जानता है। आज के आधुनिक समाज के साथ तुलना की जाए तो बहुत सी असहज बातों को हम पाएंगे। युद्ध, बंधक बनाकर लोगों को रखना, पुरुष वर्चस्व (male domination) जैसी बातें उस समय के समाज में देखा जाता था। ऐसी बातों को पढ़कर हमें लगता है की यह सब कितनी गलत बातें हैं, उनकी विचारधारा तो लोकतंत्रीय नहीं है, वह तो रूढ़िवादी हैं और हमें असहज महसूस होगा। लेकिन सच्चाई यह है की यह सब उस समय के प्राचीन समाज में प्रचलित बातें थी। हमें इस बात को स्वीकारना होगा की प्राचीन इसराइली जिन सामाजिक संरचना के अनुसार चलते थे वह आज के आधुनिक सामाजिक संरचना से भिन्न थी।
3. यह हमारे लिए एक उपयोगी और लाभदायक विचार होगा जब हम यह समझ लेंगे की पुराने नियम में इसराइली लोगों को दी गयी हर विधियां परमेश्वर के आदर्श पूर्ण चरित्र का प्रतिनिधित्व नहीं है। इसराइली लोगों के मन की कठोरता के कारण उन्हें कुछ बातों की अनुमति दी गयी थीं, परन्तु आरम्भ में ऐसा नहीं था (व्यवस्था विवरण 24:1 / मत्ती 19:8)। परमेश्वर का आदर्श पूर्ण स्वभाव तो यह है की पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बने रहेंगे (उत्पत्ति 2:24)। पुराने नियम की कुछ आज्ञाएं जैसे की परमेश्वर को अपने सारे ह्रदय से प्रेम करना, परमेश्वर को पवित्र जानना, उसकी आराधना करना इत्यादि परमेश्वर के आदर्श पूर्ण चरित्र का प्रतिनिधित्व करती हैं क्योंकि वह उसके योग्य है। लेकिन हम कुछ ऐसी विधिओं को भी देखते है जिसे परमेश्वर में अपने नियम में उस समय के सामाजिक पृष्ठभूमि को देखते हुए दिया था।
4. इसराइली लोगों के वास्तविक अवस्था में परमेश्वर उन्हें चुनता है और उन्हें एक छुटकारे की दिशा में लेकर चलता है जिसका एक गहरा आत्मिक तात्पर्य है। अपने विधिओं में परमेश्वर कुछ प्राथमिकताओं को नियुक्त करता है जो उन्हें उस छुटकारे के मार्ग में चलने और बने रहने के लिए मददगार होगा। परमेश्वर यह भी जानता है की यह लोग तो मनुष्य ही हैं, उनमें कमज़ोरियाँ भी हैं, वह पाप करेंगे। इस सच्चाई को भी ध्यान में रखते हुए परमेश्वर इन लोगों के जीवन में अपने कार्य को निरंतर करता रहता है।
5. पुराने नियम में दिए गए विवरण (descriptive) की हर बातें निर्धारण (prescriptive) की बातें नहीं हैं। तो जब हम पुराने नियम में कुछ कठिन, असहज विवरणों को पढ़ते हैं यह हमें उसका अनुकरण करने के लिए नहीं सिखाता है पर हमारे लिए दो मकसद प्रस्तुत करता है। पहला यह है की मनुष्य के पापमय स्वभाव को पवित्र परमेश्वर इतिहास में छुपाता नहीं है पर उजागर करता है। दूसरा यह की अकसर विवरण की बातें हमारे लिये दृष्टान्त होती हैं, कि जैसे उन्होंने लालच किया, वैसे हम बुरी वस्तुओं का लालच न करें (1 कुरिन्थियों 10:6)।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आधार पर हमें यह समझना होगा की प्राचीन पूर्वी क्षेत्र में सम्मान, आदर, इज़्ज़त, प्रतिष्ठा को दर्शाने और स्थापित करने की धारणा एक मुख्य धारणा थी। इसका अर्थ यह नहीं की परमेश्वर को इन बातों की आवश्यकता है। हमें यह समझना है की परमेश्वर का स्तर मनुष्य से ऊपर है और मनुष्य की सोच के अनुसार वह महिमा, प्रतिष्ठा, आदर, सामान के बारे में नहीं सोचता है और न उन बातों की लालसा रखता है। अगर परमेश्वर ही सर्वशक्तिमान और सृष्टिकर्ता है, तो फिर परमेश्वर का प्राचीन पूर्वी क्षेत्र के लोगों के मध्य अपनी प्रतिष्ठा को दर्शाने के लिए अपनी महिमा की बात करना एक वाजिब बात थी। वह एक स्व केंद्रित व्यवहार या विचारधारा नहीं था पर यह उस समय के लोगों का प्रतिष्ठा को दर्शाने और स्थापित करने की मानसिकता के बिलकुल अनुरूप था। अगर वह सर्वशक्तिमान और सृष्टि कर्ता है तो यह कैसे संभव था की वह अपनी महिमा की बात न करता ?
3. सर्वशक्तिमान और सृष्टिकर्ता परमेश्वर को अपने जीवन के केंद्र में न रखना लोगों के लिए एक भयानक बात होती क्योंकि परमेश्वर को यह नहीं भाता है। परमेश्वर को त्यागकर जब मनुष्य दूसरी बातों में, चीज़ों में, झूठे ईश्वर में अपनी पहचान को ढूंढ़ता है यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति एक अपमान है। परमेश्वर के अनुसार लोगों का सच्चे परमेश्वर को त्यागकर झूठे ईश्वर के पीछे चलना एक बुराई थी। यिर्मयाह 2:13 में परमेश्वर कहते हैं की "क्योंकि मेरी प्रजा ने दो बुराइयां की हैं: उन्होंने मुझ बहते जल के सोते को त्याग दिया है, और, उन्होंने हौद बना लिए, वरन ऐसे हौद जो टूट गए हैं, और जिन में जल नहीं रह सकता।" इन बातों के द्वारा परमेश्वर यह चाहता है की मनुष्य की संतुष्टि केवल परमेश्वर में ही है।
निष्कर्ष
आज हमारे समाज में बाइबिल, परमेश्वर, यीशु मसीह और मसीहत के ऊपर बहुत सवाल उठाये जा रहे हैं। हमें इसका सामना करने के लिए बाइबिल को लेकर अपने अध्ययन को मजबूत करने कि आवश्यकता है। यह सच है की यीशु ने यह कहा की लोग हमें यीशु के नाम के कारण घृणा करेंगे। पर हमें इस बात को एक बहना बनाकर बाइबिल, परमेश्वर, यीशु मसीह और मसीहत के विरुद्ध उठते हुए सवालों से भागना नहीं चाहिए। हमें प्रेरित पतरस की बातों को स्मरण करना चाहिए जो उन्होंने 1 पतरस 3:15 में कहा था और उसके अनुसार अपनी तैयारी करने की आवश्यकता है। प्रभु यीशु हमारी सहायता करें की हम उसके राज्य के लिए अपनी ज़िम्मेदारी को विश्वास योग्यता के साथ निभाते रहें।
आमीन !
Ps. Monish Mitra
Thanks achche se samjhane ke liye bachno.ko
ReplyDeleteThank you brother
ReplyDeleteApne achi tara se samjha ya
Yeshu ap ko ashish de
Boht achha samjia sir ji
ReplyDeleteThanks Pastor Monish.Bahut kuch sikhne
ReplyDeleteKo mila.
Thank you pastor Monish.Bahut kuch sikhne Ko mila.
ReplyDeletepraise god
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