क्या रास्ता अलग अलग पर मंज़िल एक है ?



                  कई बार लोग कहते हैं कि सभी धर्म एक ही ख़ुदा के पास लेकर जाती है, सभी किताबे एक ही बातों को सिखाती है सबका मालिक एक है, रास्ते अलग-अलग है पर मंज़िल एक ही है।

क्या वाकई में रास्ता अलग है पर मंज़िल एक है?

रास्ता अलग-अलग पर मंज़िल एक है, धर्म अलग-अलग पर खुदा एक है, सभी धर्म एक ही बातों को सिखाती है। सबका मालिक एक है; रास्ते अलग-अलग है आप उस धर्म को मानते है, हम इस धर्म को मानते है पर मंज़िल एक ही है। आशा करते है कि ये बयान आप कई बार लोगों के मुँह से सुने रहेंगे, जब भी "यीशु का सुसमाचार" देने जाते हैं तो क्या वाकई में यह सच है कि रास्ते अलग-अलग है धर्म अलग-अलग है पर ख़ुदा एक है, और मंज़िल भी एक है इसका जवाब है बिल्कुल नहीं।
इस सवाल का जवाब तीन भागों में पेश किया गया है, ताकि समझने में आसानी हो।

1.लोग ऐसा क्यों कहते है और क्यों बयान करते है?
2.अगर यह सच है तो उससे जुड़े हुए अहम सवाल का जवाब भी हमें पता होना चाहिए है?
3.तो क्या वाकई में यह सच है?

सब पहला जब भी आप धर्म के बारें में बात करते है, मज़हब के बारें में बात करते है इतिहास गवाह है कि धर्म और मज़हब के मामले में कितनी लड़ाइयाँ हुए है। कितने खून बहे है, धर्म और मज़हब के नाम में घर उजाड़े गए हैं, कितने दंगे हुए है, कितने लोग मारे गए है, उनका क़त्ल  हुआ है। तो कुछ नेक दिल  इन्सान यह नहीं चाहते है; कि मनुष्य धर्म के नाम पर एक दुसरे को काटे, एक दुसरे का खून बहाये एक दुसरे का उजाड़े और नफ़रत की जिन्दगी जिये तो ये नेक दिल इंसानों ने ये बयान करना सुरु कर दिया होगा। कि देखो भाइयों सब धर्म एक ही बातों को सिखाती है रास्ता तुम्हारा अलग है तुम हिन्दू हो, तुम मुसलमान हो, तुम ईसाई हो, तुम पंजाबी हो, तुम बुद्धिस्ट हो, लेकिन मंज़िल तो एक ही है ख़ुदा एक है; तो हो सकता है उन नेक दिल इंसानों ने ऐसा बयान किया और ऐसे नेक दिल इंसान जो लोगों को एक रखना चाहते है, उन के लिए सलाम करते हैं। लेकिन क्या नेक दिल रखने के साथ-साथ क्या हमें सत्य का ध्यान नहीं देना है। क्या सत्य दब जाए और  उसके बारें में कदर नहीं करेंगे, हरगिज़ नहीं यदि कोई व्यक्ति कहता है और मानता है चार और चार पाँच है और उसको बुरा नहीं लगना चाहिए करके अगर मैं उसको सुधार नहीं रहा हूँ; कि ये बोलकर भैय्या चार ही पाँच है तो मैं गलत कर रहा हूँ। तो मैं सत्य को दबाकर उसके खुशी के लिए जी रहा हूँ नेक दिल बनना अच्छा है लेकिन सत्य के दाम पर नहीं ,सत्य को छुपाकर नहीं, उसको बलि चढ़ाकर नहीं।

दूसरा अगर ये बयान सच है कि सब मार्ग एक ही ख़ुदा के पास जाती है, अलग-अलग रास्ता मंज़िल एक है तुम ईसाई बनों, हिन्दू बनो, लेकिन ख़ुदा के पास ही जाना है, ऐसे बयान करने वालों से मैं एक सवाल पूछना चाहता हूँ अगर ये बात सही है तो क्यों जब भी ईसाई लोग लोगों को जाकर सुसमाचार बाटकर यीशु में बुलाते है; उनको ईसाई बनाते है तो आप को दिक्कत क्यों होती है क्यों आप ऐसे ईसाइयों को मारते हो? क्यों ऐसे ईसाइयों को जलाते हो? क्यों उनको काटते हो? क्यों परेशान करते हो? धर्म परिवर्तन का क्यों उन पर दोष लगाते हो क्योंकि आपके हिसाब से सारे मार्ग एक ही खुदा तक पहुँचाएगा मंज़िल तक ही पहुँचाएगा तो ईसाई आपका काम आसान नहीं कर रहें है? कि लोगों तक जाकर कम से कम एक मार्ग दिखाकर, वो मार्ग तो खुदा तक पहुँचा जाए लेकिन आप उनको परेशान क्यों करते हों? दूसरी बात कुछ लोग धर्म परिवर्तन का दोष लगाने के साथ-साथ लोगों पैसा देकर कनवर्ट करते हो। लेकिन मानलो उदाहरण के लिए; कोई व्यक्ति पैसा लेकर भी कनवर्ट हो रहा है, फिर भी आपको क्या दिक्कत है? क्योंकि आप तो कहतें हो कि हर कोई मार्ग ख़ुदा तक पहुंचता है तो उनको अपनाने दो एक ईसाई का मार्ग कम से कम ईसाई के मार्ग से खुदा तक पहुँचते है, तो ईसाई आपका काम आसान कर रहे है। एक मार्ग दिखाकर ये अहम सवाल का जवाब देना जरूरी होगा अगर आप ये कहते है, कि हर कोई मार्ग एक ही खुदा तक पहुँचाता है, तो लोगों को ईसाई मार्ग अपनाने दो उनको परेशान मत करो।

यदि आप एक पुस्तकालय में बैठो हो एक व्यक्ति आपके पास आता है, और कहता है कि देखो पुस्तकालय में जितने भी किताबे है पच्चास किताब, सौ किताब, हजार किताब यह सब भी किताबों में एक ही बात लिखा हुआ है, तुरन्त आप चौक जाओगे और पूछोंगे क्या सारें किताबों में एक ही बात लिखा हुआ है। आप उस व्यक्ति को क्या कहेंगे, अगर वो व्यक्ति हाँ कहता है तो, हो सकता है आप तुरन्त उसको पूछेंगे क्या तुमने ये पुस्तकालय क़िताबों को पढ़ लिया यह कहने के लिये कि सारे किताबों में एक ही बात लिखी हुई है। वैसे ही दोस्तों जो व्यक्ति ये बयान करते है, उनको ये सवाल पूछना चाहूँगा कि क्या आप ने सभी धर्मों का पढ़ाई कर लिया, और सभी धर्मों को जाँच लिया यह कहने के लिए सब मार्ग खुदा के पास ले चलता है । और मंज़िल भी एक है कितना गलत है देखियें लॉजिक कुछ भी कहते है यहाँ-वहाँ से सुनकर कहने लग जाते है, तो दोस्तों हमें जानना जरूरी है ।
क्या वाकई में सभी रास्ते अलग-अलग है पर मंज़िल एक है? अब इस जवाब को पेश करने के लिए हम इस दुनियाँ के चार मुख्य धर्म को जाँच कर देखेंगे।

1.हिंदुत्व
2.बुद्धिस्ट
3.इस्लाम
4.ईसाइयत (क्रिश्चियानिटी)

जब हम हिंदुत्व के बारे में बात करते है दुनिया की सृष्टि, मनुष्य का मोक्ष, संसाधय ये सब अलग-अलग कहानियां है कुछ कहानियां ये कहती है। कि इन्सान जो हैं जब इस दुनियां में जीता है, तो उसे कर्मा से गुजरना पड़ता है उसको हर एक बार जन्म लेना पड़ता है। ये जन्म खत्म होने के बाद, एक और जन्म लेना पड़ता है वो अपने कर्मा को पूरा करते जाएगा, जब कर्मा को पूरा करके चुकाएगा। लेकिन कुछ हिन्दू शास्त्र के अनुसार से उसका जो आत्मा है वो आत्मा कर्मा के चक्र से बाहर आकर ब्रह्म के अन्दर घुल जाएगा, मतलब कि वो रिहा हो जाएगा यानी उसके आत्मा का पहचान नही रहेगा जब वो कर्मा से बाहर आ जायेगा ये हिंदुत्व सिखाता है और हिन्दू में अनन्त काल स्वर्ग ही नहीं हैं और ज़िन्दगी कर्मा के चक्र से बाहर आने के बाद इन्सान का पहचान तक मिट जाता है।

बुद्धिस्ट के बारे में बात करते है, तो बुद्धिस्ट यह सिखाता है कि इन्सान के अन्दर आत्मा होता ही नही वो कहते है हम इस दुनिया में अच्छे बुरे कामों को सही करना चाहिए और सुधरना चाहिये है ताकि हम कर्मा से बच जाए बुद्धिस्ट यह सिखाता है कि कर्मा है बार-बार जन्म लेना लेकिन वहाँ पर भी एक समस्या है जब इन्सान के पास आत्मा ही नहीं तो मरने के बाद उसका आत्मा दोबारा कैसे जन्म लेगा और बुद्धिस्ट सिखाता है कि स्वर्ग नाम का कोई चीज ही नहीं है जब आप इस कर्मा के चक्र से रिहा हो जोयेंगे तो खत्म उसके बाद इन्सान की कोई पहचान ही नही कोई अस्तित्व ही नहीं।

इस्लाम के बारे में बात करते है, तो इस्लाम एक अलग तरीके का स्वर्ग दिखाता है इसे लोग कहते है जन्नत अगर इस दुनिया में अच्छा काम करके जन्नत में प्रवेश किये तो जन्नत में आपको क्या मिलेगा जो पुरुष है उनको हूजिद मिलेगी उनके साथ यौन संबंध करने के लिए और इसके अलावा वहाँ पर खाना-पीना, ऐशो-आराम होगा बस इतना ही फरक दिखाता है इस्लाम के जन्नत में इस संसार में जो जो पैसे देकर मिलती है खाना-पीना, यौन संबंध बनाना। लेकिन जन्नत में मुफ्त में मिलेगी और खुदा के जगह पर मिलेगी, लेकिन खुदा के साथ कोई संबंध ही नही है, ये इस्लाम सिखाता है।

जब हम ईसाइयत (क्रिश्चियानिटी) बारे में बात करते है, कि मंज़िल के बारे में बात करते है तो बिल्कुल अलग है न वहा पर यौन संबंध है, न वहाँ पर लालच है, न वहाँ पर दुःख तकलीफ़ है, वहाँ पर केवल और केवल मनुष्य परमेश्वर के उस पवित्र रिश्ते का आनन्द लेगा।  इस पवित्र रिस्ते के अन्दर अपने ख़ुशी को बढ़ाएगा, और हमें बाइबल में पढ़ने को मिलता है जब हम स्वर्ग में जायेंगे तो खुदा कौन है? कैसा है? यह जानने में इन्सान का तहे दिल का तड़प होता है जब वो कोई भी धर्म को माने एक तड़प होता है कि खुदा कैसा होगा, खुदा के साथ मैं बात करूँगा, खुदा के साथ रिश्ता बनाऊंगा ये तहे दिल का तड़प केवल ईसाइयत में पूरा होता है; क्योंकि स्वर्ग में खाने पीने, यौन संबन्ध बनाने, और बाकी चीजों के लिए नहीं बल्कि स्वर्ग में हम खुदा को उस उत्तम रिस्ते में जाते है और खुदा के साथ समय बिताने के लिए और ख़ुशी से रहने के लिए जहाँ पर कोई दुःख तकलीफ नहीं।

 हिन्दुत्व के बारें में बात करते है, तो वहाँ पर स्वर्ग नहीं  और खुदा के साथ कोई संबंध नहीं है बुद्धिस्ट के बारे में बात करते है, तो कर्मा चक्र के बाहर आने के बाद आपका कोई अस्तित्व नहीं, स्वर्ग नही, खुदा नही इस्लाम के बारें में बात करते है; तो दुनिया का ऐशो-आराम जिन्दगी मुफ़्त में मिलेगी। लेकिन खुदा के साथ संबंध नहीं, लेकिन इंसान के तहे दिल के तड़प को पूरा करने वाला, खुदा के साथ रिश्ता बनाने वाला जो कार्य है; वो आपको केवल ईसाइयत(क्रिश्चियानिटी) के जन्नत में ही मिलेगा।

अगर आप हिंदुत्व का रास्ता लेते है, तो कहीं ओर  आपका मंजिल है।

अगर आप बुद्धिस्ट का रास्ता लेते है, तो कहीं ओर जगह पर आपका मंज़िल है।

अगर इस्लाम का रास्ता लेते है, तो मंज़िल कहीं ओर है।
और यह कहना बिल्कुल गलत है कि अलग-अलग धर्म में मंजिल एक है आप देख रहे है; कि धर्म भी अलग-अलग नहीं है अलग अलग मार्ग भी नहीं है।
बल्कि उसके साथ-साथ मंजिल तक अलग है तो यह हमको जानना बेहद जरूरी है, तो आशा करते है कि ये जो सवाल है उसका जवाब मिल गया होगा। कि मार्ग अलग-अलग है मंज़िल एक नहीं है तो दोस्तों, जैसे मार्ग अलग-अलग है वैसा ही मंजिल भी अलग-अलग है लेकिन सारे मंजिलों में एक ही मंज़िल सच है जो आपके तहे दिल के तड़प को जिसके के लिए आप तड़पते है, भक्ति करते है, पूजा करते है, यत्न करते है, जो भी करते है उसको पूरा करता है वो है ईसाइयत (क्रिश्चियानिटी) का स्वर्ग राज्य वहीं है सही मार्ग, और वहीं है सही मंज़िल क्योंकि आप हिंदुत्व के बारे में बात करते है, हिंदुत्व आपको सिखाता है कि अच्छा कर्म करो तो तुम्हारे कर्म चक्र से बाहर आ जाओगे मतलब तुम खुद अपने आप को संभालो, तुम खुद अपना भविष्य बना लो, बुद्धिस्ट के बारे में बात करते है, वहाँ पर तो भविष्य ही नहीं लेकिन फिर भी अपना काम खुद सम्भालो, खुद का कार्य खुद करो, तुम दुनिया के मोह-माया से मुक्त हो जाओ मतलब यहाँ पर ओर भी तुम्हारा समस्या है, तुम ही अपने समस्या को सुलझाव।

इस्लाम की बात करते है, कि क्या अच्छे काम करना चाहिए जी हाँ कुरान यही सिखाता है; कि अच्छे भले काम करो ताकि तुम जन्नत में प्रवेश करो लेकिन जब आप ईसाइयत (क्रिश्चियानिटी ) के बारे में बात करते है, ईसाइयत में खुदा कहता है कि समस्या तुम्हारा है तुम खुद सुलझा नही सकते हो इसलिए तुम्हरा ज़िन्दगी बिगड़ा हुआ है; तुम्हारे जीवन में पाप, गरीबी, दुःख तकलीफ, बीमारी है, लेकिन तुम्हारा समस्या मैं सुलझाऊंगा। ये है ईसाइयत में फरक दोस्तों हिंदुत्व कहता है, तुम्हरा समस्या तुम सुलझाव, बुद्धिस्ट कहता है, तुम्हारा समस्या तुम सुलझाव, इस्लाम कहता है तुम्हारा समस्या तुम सुलझाव लेकिन ईसाइयत (क्रिश्चियानिटी) का बात करते हैं तुम्हारा समस्या मैं सुलझाऊंगा यह खुदा कहता है इसलिए खुदा इन्सान बनकर आया अपना खून बहाकर, अपना लहू बहाकर, अपने जान को देकर आप को पाप से, और श्राप से छुड़ाया यही है दोस्तों अहम चीज जो हमें जानना चाहिए है। और समझना चाहिए जब हम हिंदुत्व के बारे में बात करते है स्वर्ग जाना, मोक्ष प्राप्त करना उसका कोई आश्वासन नहीं है क्योंकि कर्मा आपको अगले जन्म में दोबारा ला सकता है। लेकिन पता नहीं अगले जन्म में आप रिहा होंगे या नहीं स्वर्ग जाने का आश्वासन नहीं हैं।

बुद्धिस्ट के बारे में बात करेंगे, स्वर्ग का कोई आश्वासन नही कर्मा चक्र से बाहर जिन्दगी खत्म अस्तित्व खत्म
इस्लाम के बारे कहेंगे तो क्या वाकई में जन्नत मिलेगा इसका भी आश्वासन नहीं है क्योंकि मुसलमान कहते है इंशाल्लाह! क्योंकि कुरान में स्वर्ग का आश्वासन नहीं है।

लेकिन जब ईसाइयत के बारे में बात करते है बाइबल में यीशु मसीह कहते है कि मैं तुम्हें अनन्त काल का जीवन दूँगा मैं तुम्हें स्वर्ग दूँगा, और ये आश्वासन सच्चे ईसाइयों का है कि वो स्वर्ग राज्य में प्रवेश करेंगे और वो आश्वासन होने के कारण हम एक गीत गाते है जो कोई और गा नही सकता। "नीले आसमा के पार जाएंगे मेरा यीशु रहता वहां हम मिलेंगे बादलों पर देखेगा सारा जहाँ...।
हाँ दोस्तों ये आश्वासन ईसाइयत में मिलता है हम जायेंगे नीले आसमा के पार.. यीशु को मिलने और यीशु के साथ रहने, और गीत को लगातार गाके देखिये उसका  कोई भी वादा अधूरा नही होता है पूरा होगा यीशु ने कहा मैं आऊँगा तुम्हें लेने, और स्वर्ग राज्य में पहुँचाने के लिए और वो वादा जरूर पूरा करेगा और यीशु आपको लेने जरूर आएगा।

तो दोस्तों क्या वाकई में रास्ता अलग-अलग है पर मंज़िल एक है एक तरीके से सही हैं, क्योंकि आप कोई भी धर्म अपना लो लेकिन आपको न्याय के सामने जाकर खड़े रहना है जवाब देने के लिए जाने की जगह एक है लेकिन आश्वासन के साथ यीशु मसीह देते हैं यीशु मसीह कहते हैं कि तुम मेरे साथ स्वर्ग में रहोगे स्वर्ग राज्य में प्रवेश करोगे। हाँ दोस्तों अगर आप यीशु मसीह को स्वीकार करना चाहते हैं कि यीशु मसीह आपके जिन्दगी को बदले तो इसको धर्म के रूप नहीं। मन परिवर्तन के रूप में देखों, और स्वर्ग को आश्वासन के रूप में देखों।

यदि आप यीशु मसीह को स्वीकार करना चाहते है, तो आप छोटा-सा प्रार्थना कीजिये; और कहिये खुदा यीशु मसीह मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं पापी हूँ, मैं खुद अपने आप को बचा नहीं सकता, मैं चाहता हूँ आप मेरे लिए सहायक बने, और मेरा उद्धारकर्ता बने, आपने मेरे कर्मा को चुका दिया है मैं आपके लहू को स्वीकार करता हूँ, आपको मैं सृष्टिकर्ता स्वीकार करता हूँ। आईये मेरे जिन्दगी में मेरे जीवन का नियंत्रण लीजिए, आपके चरणों में मेरे जीवन को सौंपता हूँ ये प्रार्थना यीशु मसीह के नाम से माँगते है आमिन।

अगर ये प्रार्थना यीशु मसीह के नाम से किया है, तो यीशु मसीह आपके दिल के द्वार पर खटखटाते रहें, इतने दिन तक आपके अन्दर प्रवेश करेंगे और आपके जिन्दगी को बदल देंगे।

तो क्या सभी मार्ग अलग-अलग है, पर मंज़िल एक है इसका जवाब है नहीं।
अगर आपने ये पढ़ लिया है, तो प्रार्थना के साथ सीखिए। और यह गीत को गाइये नीले आसमा के पार जायेंगे मेरे यीशु रहता वहाँ......।

मैं तुमसे सच सच कहता हूँ कि जो विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है। (यूहन्ना 6:47)

और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। वे कभी नष्ट न होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। (यूहन्ना10:28)

और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो। (यूहन्ना14:3)

तब हम जो जिवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिले; और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे। (1थिस्सलुनीकियों 4:17)

प्रभु आपको आशीष करें!

Transcription by - Sushma Gupta

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