हम में से कई लोग कभी-कभी हैरान, शंकित और भ्रमित होते हैं कि हमें परमेश्वर के पास कैसे जाना चाहिए? कुछ लोग कह सकते हैं कि चूँकि परमेश्वर अनुग्रहकारी है, इसलिए हम जैसे हैं वैसे ही उसके सम्मुख आ सकते हैं। वह सिर्फ हमारे ह्रदय को देखता है और इसलिए अन्य सभी चीजें मायने नहीं रखती हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि परमेश्वर पवित्र है और इसलिए हमें विभिन्न नियमों और विधियों के आधार पर उससे संपर्क करना होगा और यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो परमेश्वर हमारा न्याय करेंगे और नरक भेजेंगे। कुछ अन्य लोगों के पास एक उदारवादी दृष्टिकोण है और वह सोचते हैं कि यदि वे समय पर चर्च पहुंचते हैं, नियमित रूप से दान और भेट देते हैं, मिशन के काम में योगदान करते हैं और धर्मोपदेशों को ध्यान से सुनते हैं तो परमेश्वर हमसे प्रसन्न होंगे। तो चलिए, इसका एक बाइबिल रूपी परिप्रेक्ष्य देखें। ।
हम यीशु मसीह के कारण परमेश्वर के पास आ सकते हैं।
सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि मनुष्य के पतन के कारण (रोमियों 5:12), वह परमेश्वर के निकट नहीं जा सकता है; बल्कि मनुष्य परमेश्वर की महिमा से रहित है (रोमियों 3:23)। लेकिन परमेश्वर ने हमारे लिए अपने प्रेम को प्रदर्शित किया और यीशु मसीह के माध्यम से एक रास्ता प्रदान किया ताकि अब हम परमेश्वर के पास मसीह के बलिदान रूपी मृत्यु और उसके पुनरुत्थान पर भरोसा करने के द्वारा आ सकते हैं (रोमियों 3:24, 5: 8-9, 1 कुरिन्थियों 15: 3-4)। इसलिए, यीशु मसीह परमेश्वर और मनुष्य के बीच एकमात्र मध्यस्थ है (1 तीमुथियुस 2: 5-6)।
हम यीशु के बलिदान के आधार पर परमेश्वर के पास आ सकते हैं
पवित्र परमेश्वर का क्रोध केवल एक सिद्ध बलिदान से संतुष्ट हो सकता है और मसीह वह निष्कलंक मेमना बन गया, जिसने अपना बहुमूल्य लहू (1 पतरस 1: 17-18) बहाकर एक संपूर्ण और सिद्ध बलिदान हो गया। वह हमारे लिए सदा काल के लिए अनन्त उद्धार प्राप्त किया, और उन सभी को सर्वदा के लिए सिद्ध किया जो पवित्र किए जा रहे हैं (इब्रानियों 10: 11-14)। यह एक संपूर्ण और सिद्ध बलिदान था जिसके द्वारा पापी मनुष्य के प्रति परमेश्वर का क्रोध संतुष्ट हुआ।
परमेश्वर के पास आने के लिए उसकी मांग एक “मनभावने बलि” की है
यीशु का आदर्श बलिदान होना परमेश्वर के "मनभावने बलि / बलिदान" की माँग को पूरा करना है जो हम पुराने नियम में पाते हैं। हाबिल को उसके बलिदान के कारण धर्मी घोषित किया गया था। याजक परमेश्वर और मनुष्य के बीच मध्यस्थ के रूप में सेवा करते थे और इसलिए लोगों की ओर से बलिदान चढ़ाते थे ताकि वे परमश्वर के सामने ग्रहणयोग्य ठहर सके (लैव्यव्यवस्था अध्याय 1-5, 16)। सुलेमान द्वारा बनाए गए मंदिर के समर्पण के दौरान परमेश्वर को बलि चढ़ाई गयी थी (2 इतिहास 7: 1-7)। ग्रहणयोग्य बलिदानों के संदर्भ में ही यह संभव था कि पवित्र परमेश्वर लोगों के साथ संगति रख पाता।
परमेश्वर की पवित्रता और न्याय
परमेश्वर अपने पवित्रता और न्यायपूर्ण गुण से समझौता नहीं करेगा ताकि वह हमें स्वीकार करे और हमें उसके सम्मुख भी आने की अनुमति दे। हालाँकि, परमेश्वर प्रेम है (1 यूहन्ना 4:8), लेकिन परमेश्वर स्वयं पवित्र और न्यायपूर्ण होने से अपने आप को रोक नहीं सकता है (व्यवस्थाविवरण 32:4) और हमें अपने तरीके से या फिर जैसा हम चाहें उस तरीके से या फिर जैसा हमें अच्छा लगता है वैसे उसके पास आने की अनुमति दे नहीं सकता है। पवित्र और न्यायपूर्ण परमेश्वर को इसलिए "मनभावने बलि / बलिदान" की आवश्यकता है ताकि मनुष्य उससे संपर्क कर सके।
हमारी जिम्मेदारी
मसीह के बलिदान ने हमें परमेश्वर के सामने धर्मी ठहराया है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अब गैर जिम्मेदार और लापरवाह बनके जीने लग जाएँ। धार्मिकता पाने के बाद हमें अब एक पवित्र जीवन को जीना है और अपने उद्धार के कार्य को पूरा करते जाना है (फिलिप्पियों 2:12) जिसमे यह बात भी शामिल है की की हमे परमेश्वर के सम्मुख किस प्रकार उपस्थित होना है। अब हमें इस संसार के श्रादृश्य नहीं बनना है पर हमें अपने आप को परमेश्वर के लिए एक जीवित बलिदान के रूप में पेश करना होगा (रोमियों 12: 1-2)। हम परमेश्वर के पास इस बात को समझते हुए आते हैं की मसीह ने हमारे लिए क्या किया है, यह समझते हुए आते हैं की उसने हमे पाप के दसतवा से छुड़ाया है, और अब हमारे शरीर को हम धार्मिकता के लिए प्रस्तुत करते हैं (रोमियों 6: 12-13)।
निष्कर्ष
जब हम परमेश्वर के उपस्थिति में आने की बात करते हैं हमे इस बात को ध्यान में रखना होगा की हम रूढ़िवादी मानसिकता के अनुसार इसे न देखें और विधियों को पालन करने की कार्य आधारित धर्मिकता में न चले जाएँ और दूसरी और हमें लापरवाह भी नहीं होना चाहिए। दोनों में से कोई एक दृष्टिकोण को अगर हम मानते हैं तो इससे यह पता चलता है कि हमने मसीह के बलिदान को नहीं समझा है। तो परमेश्वर के उपस्थिति में आने की बात जब हम करते हैं तो यह ज़रूरी है की हम अपने जीवन से, चरित्र से, व्यवहार से और मानसिकता से कृतज्ञता, विनम्रता धन्यवाद और परमेश्वर के प्रति एक पवित्र भय के साथ आएं और उसको दर्शायें। चाहे वह एक चर्च सेवा, प्रार्थना सभा, उपासना का समय, बाइबल अध्ययन आदि में भाग लेने की बात हो, हमें स्वयं अपना मूल्यांकन करना चाहिए कि हम परमेश्वर की उपस्थिति में किस मनसा के साथ आएं हैं, हमारा दृष्टिकोण कैसा है, क्या हमने परमेश्वर को उचित आदर, प्रशंसा और सम्मान दिया है। हमारे जीवन को प्रभु के लिए एक स्वीकरणीय / ग्रहणयोग्य भेट के रूप में प्रस्तुत करना, पवित्र परमेश्वर के लिए एक जीवित बलिदान बनना हमारा उद्देश्य होना चाहिए।
-Pastor. Monish Mitra
Thank you sir for this valuable explanation
ReplyDeletePraise the LORD
ReplyDeleteAmen amen !!
Praise the lord.... thank you brother ..mujhe parmeswer ko Adar kaise dena h ye Mai smjh nhi pa rhi thi ...ab Jan gyi hi.... thank you so much ...Hume aise hi vachhno se guide krte rheye..ki Apne jiwan ki daud ko achhi trh daud ske ...
ReplyDeleteThank you so much Pastor Monish
ReplyDeleteHume sirf Parmeshwer se prabhvit hi nahi hona chahiye balki poori aagyakaita se Parmeshwer ka aunsaran karna chahiye or Prabhu ke liye khud ko badalna bhi chahiye.
Thank you so much pastor Monish for very valuable messages.
ReplyDeleteप्रभूची स्तुती असो खूप छान संदेश सांगीतल्या बद्दल धन्यवाद
ReplyDeleteVery nice thank u pastor ji
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