आज हम अपनी सुरक्षा के लिए "मसीह के लहू का बाढ़ा लगाने" के विषय पर एक चर्चा करेंगे। ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने घरों, दरवाजों, नौकरियों, वाहनों, प्रियजनों आदि पर "मसीह के लहू का बाढ़ा” लगाते हैं और दावा करते हैं कि मसीह के खून की दलील देने से उन्हें नुकसान नहीं होगा। ऐसी प्रार्थनाओं को अधिक शक्तिशाली माना जाता है। जो लोग "मसीह के लहू का बाढ़ा लगाने” के विषय पर सिखाते हैं, वे आमतौर पर निर्गमन 12 में उल्लिखित फसह की घटना की ओर इशारा करते हुए अपनी शिक्षा को केंद्रित करते हैं। जिस तरह मेमने के खून ने इस्राएलियों को मौत से बचाया और फिरौन की गुलामी से मुक्ति दिलाई, उसी तरह यीशु का खून आज भी मसीहियों की रक्षा कर सकता है, अगर वे "मसीह के लहू का बाढ़ा लगाने" की याचना करते हैं।
हालाँकि, हम N.T में इस प्रकार की प्रार्थनाएँ नहीं पाते हैं जहाँ यीशु, प्रेरित या NT लेखकों ने "मसीह के लहू का बाढ़ा लगाने" के द्वारा समस्याओं, बीमारी इत्यादि से बचने के बारे में सिखाया हो।
मसीह के रक्त के बारे में शिक्षाएं हमेशा हमारे पापों को धोने, क्षमा करने और उस पवित्र लहू के सामर्थ के द्वारा पाप पर निरंतर विजय प्राप्त करने से संबंधित थीं। हाँ, मसीह के खून में सामर्थ है; लेकिन यह सामर्थ हमारे पापों की क्षमा और एक पवित्र (शुद्ध) जीवन जीने के संदर्भ में लागू होती है। इससे संबंधित पवित्रशास्त्र के अंश मत्ती 26:27-28, इब्रानियों 9:12,14, 12:22-24, 13:12,20, रोमियों 3:24-25, 5:9, इफिसियों 1:7, 2:13, 1 पतरस 1:2, 18-19, 1 यूहन्ना 1:7, 4:10, प्रकाशितवाक्य 12:11 में लिखा गया है
मैं केवल एक अंश की बात करूंगा जिसका दुरुपयोग किया जाता है। यह प्रकाशितवाक्य 12:11: " और वे मेम्ने के लहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्त हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली।" बहुत से लोग इस अंश के केवल आधे हिस्से को उद्धृत करते हैं " और वे मेम्ने के लहू के कारण उस पर जयवन्त हुए," और निष्कर्ष निकाला कि उनके घर, दरवाजे, नौकरी, वाहन, प्रियजनों आदि के ऊपर "मसीह के लहू का बाढ़ा लगाने" से वह अब सभी समस्याओं से बच जाएंगे। इसलिए यह एक बहुत गलत अनुवाद है।
अतः इसीलिए उपर्युक्त दिए गए वचनों को पढ़ना ज़रूरी है ताकि वचनों के अंशों का गलत उपयोग करने के बजाय हम मसीह के लहू के महेत्व को सही से समझे।
यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हम परमेश्वर के साथ अपने संबंधों के संदर्भ में किस सुरक्षा के विषय को समझते हैं? वह कौन सा संदर्भ है जिसके आधार पर हम परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में गंभीर हैं? यदि परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता उन सभी चीजों पर आधारित है जो भौतिक, सांसारिक, अपने लाभ से जुड़ी हुई बातें हैं, जिन्हें हम परमेश्वर से प्राप्त कर सकते हैं, तो जाहिर है कि हम उस संदर्भ में सब कुछ करेंगे। लेकिन हमें यह समझने की ज़रूरत है कि परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता एक समय पाप के कारण टूटा हुआ था पर अब मसीह के बलिदान के द्वारा मिलाप किया गया है। टूटे हुए रिश्ते का परिणाम अनंत मृत्यु, परमेश्वर से अलग होना था। चूँकि परमेश्वर के साथ हमारा मिलाप हो गया है, इस रिश्ते को बनाये रखने के लिए परमेश्वर ने हमें कुछ निर्देश और आज्ञाएँ दी हैं जिससे हम पाप के क्रियाओं से बचे और शरीर की चाल न चलें। यह वास्तव में वह लड़ाई है जिसका हम प्रतिदिन सामना करते हैं और इसके लिए हमें परमेश्वर की कृपा, अनुग्रह और सुरक्षा की आवश्यकता है।
घर, दरवाजे, नौकरी, वाहन और अपने प्रियजनों पर "मसीह के लहू का बाढ़ा लगाने" के बजाय, हमें पाप के विरुद्ध लड़ाई, पापों के प्रलोभनों पर विजय पाने के संदर्भ में मसीह में विजयी जीवन जीने के लिए दिए गए निर्देशों का पालन करना चाहिए और पवित्र जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। हम मसीह के लहू से शुद्ध किये गए हैं, और अब वह हमारा महायाजक है और मध्यस्थ हैं जो इब्रानियों 7:25 के अनुसार वह हमारे लिये बिनती करने को सर्वदा जीवित है। मसीह के भेड़ के रूप में हम पहले से ही उनकी सुरक्षा में हैं, उन प्रतिज्ञाओं और वायदों पर भरोसा रखते हुए हमे दिन प्रतिदिन चलना है जो उसने हमे पाप के ऊपर जय पाने के लिए और एक पवित्र जीवन जीने के लिए अपने वचनों में दिए हैं। 1 यूहन्ना 1:9, 2 पतरस 1:3-11, 1 पतरस 1:15, 5:8, याकूब 4:7, इब्रानियों 12:1-2, तीतुस 2:11-12, 2 तीमुथियुस 2:20-23, कुलुसियों 3:1-3, इफिसियों 4:22-24, गलातियों 5:16, 1 कुरिन्थियों 6:13-14, 19-20, 10:13, 15:56-57, रोमियों 12:1-2, मत्ती 6:9-13.
तो पतरस और यूहन्ना ने कैसे जवाब दिया जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था और विश्वासियों ने उत्पीड़न की स्थिति में प्रार्थना कैसे की थी (प्रेरित 4: 13-30), पौलुस और सिलास कारावास में क्या कर रहे थे (प्रेरित 16: 22-25), इफिसुस में पौलुस और कलीसिया के प्राचीनों की क्या प्रतिक्रिया थी, जब पौलुस यरूशलेम को उस उत्पीड़न के लिए रवाना होने वाला था, (प्रेरित 20: 17-38), उत्पीड़न, बीमारी, गरीबी, के प्रति पौलुस का रवैया क्या था (2 कुरिन्थियों 11: 23-30, 12:10)? यह समझने के लिए कि वे अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना कैसे करते हैं, कृपया इन अंशों को पढ़ें।
इसलिए मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जब हम अपने जीवन में समस्याओं का सामना करते हैं तो हमें प्रार्थना नहीं करनी चाहिए, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि "मसीह के लहू का बाढ़ा लगाना" ऐसी प्रार्थनाओं से संबंधित क्यों नहीं है। हमें निश्चित रूप से ऐसी समस्याओं के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, लेकिन हमें मसीह के लहू का बाढ़ा लगाने की विनती करके सुरक्षा की मांग नहीं करनी चाहिए जिससे यह प्रतीत हो की मानो परमेश्वर हमारा कर्ज़दार है और वह इन बातों के लिए बाध्य है, बल्कि हमारी प्रार्थना परमेश्वर की इच्छा और योजना के प्रति विनम्र और समर्पण स्वभाव से भरी होनी चाहिए।
प्रभु आपकी सहायता करें और आपका मार्गदर्शन करें।
-Pastor Monish M
Baht achhe se samjha diye sir
ReplyDeleteYes parmesowr ka mahima ho....Love you GA.
ReplyDeleteAbsolutely right brother God bless you abundantly and your team
ReplyDeleteVery nice explained
ReplyDeleteBahut achche se samjha diya bhai aapne hame thanks bhai
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteBahut hi acche se samjha diya hain.Thank you Pastor Monish.
ReplyDeleteGod bless you GA team