क्या बपतिस्मा लेने के लिए स्थानीय कलीसिया का सदस्य होना ज़रूरी है? क्या मसीह पर विश्वास करना काफी नहीं है?

आज हमारे सामने जो चुनौती है, वह यह है कि स्थानीय कलीसिया का सदस्य होना और बपतिस्मा लेना ज्यादातर लोगों के लिए केवल एक औपचारिक बात बन गया है और इसलिए वे स्थानीय कलीसिया का सदस्य होना और बपतिस्मा लेना से संबंधित जवाबदेही और जिम्मेदारी को नज़रअंदाज़ करते हैं। मसीह कलीसिया को अपनी दुल्हन के रूप में देखता है। मसीह ने कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया कि उस को वचन के द्वारा जल के स्नान से शुद्ध करके पवित्र बनाए। और उसे एक ऐसी तेजस्वी कलीसिया बना कर अपने पास खड़ी करे, जिस में न कलंक, न झुर्री, न कोई ऐसी वस्तु हो, वरन पवित्र और निर्दोष हो (इफिसियों 5: 25-27)। विश्वासियों के रूप में हम अब इस कलीसिया का हिस्सा हैं, जहाँ अब हमें एक-दूसरे की सेवा करने के लिए, प्रेम रखने के लिए दान-वरदान दिए जाते हैं ताकि कलीसिया की देह की उन्नति हो सके (1 कुरिन्थियों 1: 7-28, 14:12)। यह कलीसिया केवल एक इमारत नहीं है, बल्कि इसे परमेश्वर के घराने के रूप में सम्बोधित किया गया है जो प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं की नींव पर बनाया गया है जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु है (इफिसियों 2: 19-20)।

यह वह घराना है, परिवार और लोगों का झुण्ड है जिन्होंने उस महान सुसमाचार पर विश्वास किया है और अब यह वह स्थान हैं जहाँ वे जवाबदेही और जिम्मेदारी का अभ्यास / पालन करते हैं। यह स्थानीय कलीसिया है और इस स्थानीय कलीसिया के हिस्सा होने की भूमिका गलातियों 6: 2, कुलुस्सियों 3:16, इफिसियों 5:19, 1 पतरस 4:10 में बताया गया है। आजकल लोग इन भूमिकाओं को स्थानीय कलीसिया के बहार सामाजिक सेवा और गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से दर्शाना कहते हैं और स्थानीय कलीसिया में इनको पालन करने की ज़िम्मेदारी को बिलकुल नज़रअंदाज करते हैं।

जब हम बपतिस्मा के बारे में बात करते हैं, तो यह कभी भी एक व्यक्तिगत, निजी और पृथक कार्य नहीं होता है। यह उस नए जनम और परिवर्तन का एक बाहरी प्रदर्शन है जो हमारे ह्रदय में हुआ है (रोमियों 6: 3-6), लेकिन यह बाहरी प्रदर्शन लोगों के बीच में, विशेष रूप से स्थानीय कलीसिया के लोगों की बीच में किया जाता है। ऐसा करने से यह व्यक्ति अपने आप को कलीसिया के प्रति समर्पण को दर्शाता है, खुद को स्थानीय कलीसिया के प्रति जवाबदेह बनाता है, ताकि वह अब अपनी आत्मिक चाल में पोषित हो सके, निर्देशित हो सके, प्रोत्साहित हो सके, अनुशासित हो सके जैसे-जैसे वह अपने आप को वचन की सामूहिक और व्यक्तिगत शिक्षा के प्रति समर्पित करता है (2 तीमुथियुस 3: 16-17)। यह कठिन है और इसलिए लोग हमेशा एक अलग, बिना जवाबदेही का मसीही जीवन जीने के बहाने ढूंढते हैं क्योंकि वे अब 1 यूहन्ना 1: 9 के हवाले से जो चाहें कर सकते हैं और भाग सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए, अधीन होना, जवाबदेह होना और अधिकार के अधीन होना बाइबिल के शब्द नहीं हैं क्योंकि उनके लिए नया नियम तो केवल अनुग्रह और प्रेम के बारे में ही है।

इसलिए, हमें यह समझना चाहिए कि बपतिस्मा केवल एक बेतरतीब कार्य नहीं है, यह एक व्यक्तिगत कार्य नहीं है, यह एक औपचारिक कार्य नहीं है, यह मसीही बनने के लिए केवल एक मापदंड को पूरा करना नहीं है। यह एक निर्णय है जिसे हम यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान के महत्व को समझते हुए करते हैं, स्थानीय कलीसिया के अधीनता में अपने आप को स्वेच्छा से प्रस्तुत करने के महत्व को समझते हुए करते हैं जिसका सर यीशु मसीह है और स्वेच्छा से स्वयं को परमेश्वर के घराने के प्रति अधीन होना है ताकि मसीह की देह में सेवा के काम के लिए सुसज्जित हो सके।

Ps. Monish Mitra

6 comments:

  1. Nice explanation thank you

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  2. First Thanks to Jesus for this opportunity and thanks to PST. Manish ji for this blog

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  3. 👌🏻👌🏻very good message

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  4. Ji pastor, aap sahi bataya ha..

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  5. Thank you pastor Monish apne bahut acche se bataya.God bless you.

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