यह भले ही काम शब्दों में बताया गया है पर यह पर्याप्त है जिससे की हम अपनी विश्वास की दौड़ को पूरी करके अपने स्वर्गीय घर तक पहुंच सकते हैं। सुसमाचार एक छोटी बात नहीं है, यह कोई परिचय नहीं है, मसीह जीवन का एक छोटा हिस्सा नहीं है जिसे हम नज़रअंदाज़ करें। सुसमाचार संपूर्ण मसीहत का सन्देश है और इसीलिए एक मसीह के लिए इस सत्य को समझना, जानना और इसपर अध्ययन करना अपने संपूर्ण जीवन का कार्य और कर्तव्य बन जाता है। भले ही और भी ऐसी चीज़ें संसार में हैं जिसके बारे में जानना जरूरी है, मसीह जीवन से जुड़े हुए भी और भी विषय हैं जिसके बारे में हमें जानना चाहिए लेकिन सुसमाचार सबसे बड़ा और विशाल विषय है जो हमारे जीवन के लिए सबसे जरूरी है क्योंकि यह हमारे उद्धार का सन्देश है।
सुसमाचार के बारे में जानना काफी नहीं है; हमें सुसमाचार के ज्ञान में बढ़ना भी चाहिए। कुरिन्थ की कलीसिया सुसमाचार को सुन चुकी थी और जानती थी, लेकिन प्रेरित पौलुस उसी सुसमाचार के ज्ञान में उनको बढ़ाना चाहते थे और इसीलिए उनको दुबारा सुसमाचार के बारे में लिख रहे थे। सुसमाचार में परमेश्वर के महिमा का खज़ाना भरा हुआ है और हम जीवन भर इसी महिमा के भेदों को, ज्ञान को, बातों को, प्रकाशन को खोजते जाते हैं, पाते जाते हैं, उससे सीखते जाते हैं और यह एक अद्भुत बात है। हमारे पास ऐसे बहुत साधन होंगे जिसे पढ़के हमने सुसमाचार में परमेश्वर की महिमा की बातों को जाना है और अपने आत्मिक जीवन की यात्रा में बहुत कुछ सीखा है। फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा की परमेश्वर की महिमा का धन इस सुसमाचार में इतना गहरा और ज्यादा है की मानो हम एवरेस्ट पहाड़ की तलहटी पर ही हैं। भले ही हमारे पास विकल्प के तौर पे मसीह जीवन से जुड़े हुए ऐसे विषय हैं जो बहुत ज़रूरी और गंभीर हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए है की इन सब का आधार और बुनियाद सुसमाचार है। सुसमाचार वह आधारभूत विषय हैं जिसपर सब बातें टिकी हैं।
इतिहास में हम ऐसे लोगों को पाते हैं जिन्होंने सुसमाचार की एक झलक को पाने के बाद अपना संपूर्ण जीवन सुसमाचार के सेवकाई के लिए दे दिया और परमेश्वर के राज्य की सेवकाई को एक अद्भुत लगन और समर्पण के साथ किया। भले ही वह सब एक दूसरे के साथ सब बातों में सहमत नहीं थे पर उन सब में जो समानता थी वह यह था की उनका जीवन सुसमाचार के प्रति समर्पित था।
सुसमाचार का अर्थ है भला सन्देश / शुभ सन्देश और इसीलिए सुसमाचार पर विश्वास करने वालों को एवंजलीकल कहा जाता है। सुसमाचार हमारा पाठ्यक्रम है और इसपर ही हमारा जीवन आधारित है।
अकसर लोगों के अंदर परमेश्वर और मसीह के प्रति एक धुन को उजागर करने के लिए प्रचारक मंच पर आके संगीत, भावनात्मक बातें, प्रभावशाली वक्ताओं का इस्तेमाल करते हैं लेकिन जितनी तेज़ी से लोगों में वह जोश भरा जाता है वह उतनी ही तेज़ी से निकल भी जाता है। वह भूलने लगते हैं की परमेश्वर और मसीह के प्रति धुन को उजागर करना केवल सुसमाचार के सत्य के द्वारा ही हो सकता है और तभी वह धुन लोगों में बने रह सकता है। प्रेरित पौलुस असाधारण ज्ञान, दान और वरदान से भरे हुए व्यक्ति थे। फिर भी उन्होंने अपनी सेवकाई का आधार विश्वासयोग्य सुसमाचार प्रचार पर आधारित किया। उनका लक्ष्य भी केवल यही था की वह लोगों तक क्रूस की कथा को लेके जाएँ। वह सुसमाचार और उसके प्रचार के बारे में समर्पित थे, उसे वह अपनी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी समझते थे।
आज, जब हम अपने चारों तरफ अन्य सुसमाचार प्रचारकों को देखते हैं हम पाते हैं की हमारे व्यक्तित्व अलग हो सकते हैं और इसीलिए कई बार हम आपस में भिन्नता को देखते भी हैं। पर जैसे ही हम सुसमाचार के बात करने लगते हैं, सुसमाचार का प्रचार करने लगते हैं तब हम उस गंभीरता में आ जाते हैं, अनंतकाल के उस दृष्टिकोण से हम अपनी बात को प्रस्तुत करते हैं और इसमें हम लोगों में कोई भिन्नता नहीं हो सकती है। सुसमाचार का वह धुन हमें निडर बना देता है, गंभीर बना देता है और लक्ष्य केंद्रित बना देता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए की अविश्वासियों के अपरिवर्तित ह्रदय की मांग और सुसमाचार के सत्य में बहुत अंतर है। इसीलिए उनकी मांग के अनुसार हम सुसमाचार को प्रस्तुत नहीं कर सकते क्योंकि उनकी मांग को पूरा करने से हम केवल उनके अपरिवर्तित ह्रदय की अभिलाषाओं को पूरा करते हैं और उनके अपरिवर्तित मन को उत्तेजित करते हैं। जब तक पवित्र आत्मा लोगों को कायल नहीं करता, पुनर्जीवित नहीं करता उनका रवैया सुसमाचार के प्रति घृणा और अरुचि का रहेगा। वह संसार के आनन्द को चुनेंगे और सुसमाचार को ठुकरायेंगे। इसीलिए हमें उनके अनुसार और उनकी इच्छा के अनुसार, उनको जैसे अच्छे लगता है वैसे सुसमाचार को बदलकर कहने की ज़रूरत नहीं है। भले ही वो सुसमाचार को नकारेंगे और वह भले ही सांसारिक सोच में हैं, फिर भी हमें सुसमाचार को वास्तविक रूप में प्रस्तुत करना चाहिए ताकि जब पवित्र आत्मा उनके जीवन में कार्य करेगा तब वह समझेंगे की सुसमाचार क्या है, वह उसे चखेंगे और जानेंगे की परमेश्वर कितना भला है। जब हम सुसमाचार को लुभावना बनाने के लिए, रोचक बनने के लिए या फिर समय के हिसाब से लोकप्रिय बनाने के लिए बदल देते हैं तो हम सुसमाचार की समर्थ पर प्रश्न उठा रहे हैं और उसकी समर्थ को नहीं समझ रहे हैं। हम सुसमाचार के समर्थ का समझौता ऐसी किसी चीज़ के साथ नहीं कर सकते हैं। सुसमाचार अपने आप में सामर्थी है और उसकी समर्थ पर्याप्त है।
Pastor - Monish Mitra
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Thank you so much for remarkable information. 🙏🙏🙏
ReplyDeleteहा सुषमाचार पर्याप्त है, किसी भी मिलावट के बिना
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट के लिए धन्यवाद 🙏 सर जी
Right
DeletePraise the Lord ✝️✝️
DeleteAmazing information thankyou very much
Thank you so much Pastor ji 🙏🙏🙏👍👍
ReplyDeleteThank you so much ����
ReplyDeleteThank you so much ����
ReplyDeleteThank you so much
ReplyDeleteThank you pastor.. ..
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने,मसीहत कर आधार ही सुसमाचार हैं।
ReplyDeleteThank u Brother God Blessed You
ReplyDeleteThanks bro for may god bless you 🙏
ReplyDeleteThank you so much,praise the Lord!
ReplyDeleteThank you brother God bless you your family and ministry
ReplyDeleteThank you pastor Monish.God bless GA team.
ReplyDeleteThank you brother
ReplyDeleteThank You Ps. Monish.
ReplyDeleteTHANKS YOU GLORY APOLOGETICS
ReplyDeleteThankyou Brother ☺
ReplyDeleteHa Sir thank you
ReplyDeleteThank you 😇😇God bless you and use you more and more for his glory and kingdom
ReplyDeleteNice sir tq so much.
ReplyDeleteBilkul sahi baat Sir ji
ReplyDeletePraise the Lord pastor Monish..Prabhu aapko aguai kare..❤️
ReplyDelete👍
ReplyDeleteThank you so much pastor Monish.
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