आज हम एक ऐसे समय में आ पहुँचें हैं जहाँ न केवल सुसमाचार के ऊपर आक्रमण हो रहा है पर सुसमाचार को गलत तरीके से प्रस्तुत भी किया जाता है। लोगों को खुश करने के लिए, अपने फायदे के लिए, लोभ और लालच के लिए बहुत सारे लोग आज एक मिलावटी सुसमाचार का प्रचार करते हैं।
इस लेख में सुसमाचार को प्रस्तुत करने से जुड़े कुछ मुख्य बातों को दर्शाया गया है।
1. सुसमाचार मनुष्य के उद्धार के निमित परमेश्वर का सन्देश है और इसीलिए सुसमाचार को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। यदि हमें परमेश्वर के साथ एक सही सम्बन्ध में जुड़ना है तो हमारे लिए सुसमाचार को ग्रहण करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। मनुष्य अपने कार्यों, बुद्धि, ज्ञान, अनुभव इत्यादि के आधार पे परमेश्वर के साथ सम्बन्ध को जोड़ नहीं सकता है। केवल समाचार को ग्रहण करने के द्वारा ही यह संभव हो सकता है।
2. सुसमाचार को ग्रहण करना सिर्फ एक प्रार्थना करना नहीं है की "यीशु, मेरे जीवन में आ”। भले ही यह वाक्यांश "सुसमाचार ग्रहण करना" सुनने में साधारण लगता है पर इसके साथ बहुत ही गहरी और गंभीर बात जुड़ी हुई है। जब हम सुसमाचार को ग्रहण करने की बात करते हैं तो हम प्रत्यक्ष रूप से उन सभी बातों को त्यागने की बात भी करते है, उन सभी चीज़ों से अलगाव की बात भी करते हैं जो सुसमाचार के विपरीत हैं। क्योंकि सुसमाचार की बातें सांसारिक विचारधारा के विपरीत हैं, तो जाहिर सी बात है की सुसमाचार को ग्रहण करने के द्वारा हमारे जीवन में अब तिरस्कार, निंदा, अपमान, क्लेश, लोगों के विद्रोह का अनुभव करना निश्चित है। सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ अपने जीवन में खुद के स्वामित्व और अधिकारों को त्यागना और परमेश्वर के अधीनता में अपने आप को सौंपना है।
3. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ उन सभी विचारधाराओं से नाता तोड़ना है जो सांसारिक पैमानों में बहुमत आधारित हैं, ग्रहण योग्य हैं, आदरपूर्ण हैं और प्रचलित हैं। सुसमाचार को ग्रहण करना एक ऐसे मसीहा को अपना जीवन सौंपना है जिसपर 2000 साल पहले उस समय के धर्मगुरुओं और अधिकारिओं का विरोधी होने का इलज़ाम लगाया गया था और सजा सुनायी गयी थी और क्रूस पर चढ़ाया गया था।
इन बातों को जानते हुए, अब, अपने जीवन की सभी सांसारिक अभिलाषाओं को त्यागकर इस मसीहा के दावों पर यकीन करना की वह जगत का उद्धारकर्ता है, हमारे पापों को माफ़ करने वाला है; यह सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ है।
4. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ यह है की हम इस बात पर यकीन करते हैं की परमेश्वर से हमारा मिलाप केवल यीशु के द्वारा ही हो सकता है, हमारे पापों को धोने वाला केवल यीशु ही है। यीशु के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। सांसारिक विचारधारा के अनुसार यह एक मूर्खता है क्योंकि आधुनिक विचारधारा के अनुसार वही व्यक्ति बुद्धिमान है जो एक से अधिक विकल्प लेके चलता है। एक विकल्प अगर काम नहीं किया तो उनके पास दूसरा विकल्प मौजूद है। पर सुसमाचार में हमारा विकल्प केवल यीशु है।
5. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ यीशु की प्रभुता के अधीन होना है। हमें यह भी समझना है की यह एक गलत धरना है की यीशु को अपने जीवन का प्रभु मानकर ग्रहण करने के बाद ही यीशु हमारा प्रभु बन जाता है; वरन वास्तव में सच तो यह है की चाहे कोई यीशु से प्रेम रखे या फिर घृणा करें, वह तो सबका प्रभु है।
4. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ यह है की हम इस बात पर यकीन करते हैं की परमेश्वर से हमारा मिलाप केवल यीशु के द्वारा ही हो सकता है, हमारे पापों को धोने वाला केवल यीशु ही है। यीशु के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। सांसारिक विचारधारा के अनुसार यह एक मूर्खता है क्योंकि आधुनिक विचारधारा के अनुसार वही व्यक्ति बुद्धिमान है जो एक से अधिक विकल्प लेके चलता है। एक विकल्प अगर काम नहीं किया तो उनके पास दूसरा विकल्प मौजूद है। पर सुसमाचार में हमारा विकल्प केवल यीशु है।
5. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ यीशु की प्रभुता के अधीन होना है। हमें यह भी समझना है की यह एक गलत धरना है की यीशु को अपने जीवन का प्रभु मानकर ग्रहण करने के बाद ही यीशु हमारा प्रभु बन जाता है; वरन वास्तव में सच तो यह है की चाहे कोई यीशु से प्रेम रखे या फिर घृणा करें, वह तो सबका प्रभु है।
फर्क इतना है की जो कोई इस प्रभु की अधीनता में आता है वह अनंत जीवन का भागीदारी होता है और जो कोई उस्से घृणा और बलवा करता है वह अनंत जीवन से वंचित रह जाता है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है की सुसमाचार को ग्रहण करने का कारण कोई लाभ को प्राप्त करना नहीं है पर इसका अर्थ यह है की अब हम यीशु की अधीनता में होकर, उसको स्वामी मानकर धार्मिकता की गुलामी में अपना जीवन व्यतीत करेंगे।
6. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ यह है की हम इस बात को समझें की प्रभु होने के नाते यीशु उन लोगों से कोई भी मांग कर सकते हैं जो उसके प्रभुत्व का अंगीकार करते हैं। इसीलिए प्रचारकों को यह ध्यान देना चाहिए की वह सुसमाचार का सन्देश सुनने वालों से सुसमाचार के हर एक पहलू को बताएं और किसी बात को न छुपाएं। सुसमाचार के सन्देश में जोखिम और खतरे से भरे हुए पहलू को छुपना नहीं चाहिए। परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा ही कोई मनुष्य इस सुसमाचार को, उसके संपूर्ण पहलुओं को सुनकर और समझकर सुसमाचार को ग्रहण करता है।
7. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ मसीह केंद्रित जीवनशैली जीना है। इसका अर्थ यह है की अब हर एक बातों का केंद्र मसीह है और मसीह को केंद्रित करते हुए हमें अपने जीवन के हर एक निर्णय को लेना चाहिए। अब सुसमाचार हमारे हर एक क्षेत्र को छूता है और हमें एक नया दृष्टिकोण और सन्दर्भ देता है जिसके आधार पर हम अपने जीवन को जीते हैं और वह मसीह है। मसीह अब हमारे जीवन का छोटा या बड़ा हिस्सा नहीं पर वह हमारे संपूर्ण जीवन को अपने अधीन ले लेता है।
8. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ यह समझना है की मसीह को ग्रहण करने से पूर्व का हमारा जीवन, उसकी उपलब्धियाँ, उससे जुड़े हुआ सम्मान, आदर, भली और अच्छी बातें और सब कुछ हमारी व्यर्थता का स्मारक है। ऐसा नहीं है की हमारे जीवन में अधिकतर बातें अच्छी थीं और जो थोड़ी बातों की कमी थी उसे यीशु ने पूरा कर दिया। ऐसा नहीं है की हमारे जीवन की अधिकतर बातों के श्रेय का कारण हम खुद हैं और बाकी बातों का श्रेय हम यीशु को दे देते हैं। सच्चाई तो यह है की हमारी उपलब्धियाँ, सम्मान, आदर, भली और अच्छी बातों के बावजूद भी हम परमेश्वर के क्रोध के संतान थे पर यीशु की महान दया के कारण हम परमेश्वर के संतान बन पाए हैं।
निष्कर्ष:- अगर आप एक सुसमाचार प्रचारक हैं, पासवान हैं, विश्वासी हैं तो आप इन बातों का ध्यान रखें। जब भी हमें लोगों तक या लोगों के मध्य सुसमाचार को सुनाने का या समझाने का मौका मिले, हम बिना किसी मिलावट के सुसमाचार को उसकी संपूर्ण सत्यता के साथ प्रचार करें क्यों की सुसमाचार आप में ही इतना सामर्थी है की वह विश्वास करने वालों के लिए उद्धार के निमित परमेश्वर का समर्थ है।
1 Corinthians 2:2, 15:19, Acts 2:36, Colossians 1:15-17, 1 Timothy 2:5, Philippians 3:4-8, Romans 3:23-24, Ephesians 1:18-22, 2:1-7.
6. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ यह है की हम इस बात को समझें की प्रभु होने के नाते यीशु उन लोगों से कोई भी मांग कर सकते हैं जो उसके प्रभुत्व का अंगीकार करते हैं। इसीलिए प्रचारकों को यह ध्यान देना चाहिए की वह सुसमाचार का सन्देश सुनने वालों से सुसमाचार के हर एक पहलू को बताएं और किसी बात को न छुपाएं। सुसमाचार के सन्देश में जोखिम और खतरे से भरे हुए पहलू को छुपना नहीं चाहिए। परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा ही कोई मनुष्य इस सुसमाचार को, उसके संपूर्ण पहलुओं को सुनकर और समझकर सुसमाचार को ग्रहण करता है।
7. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ मसीह केंद्रित जीवनशैली जीना है। इसका अर्थ यह है की अब हर एक बातों का केंद्र मसीह है और मसीह को केंद्रित करते हुए हमें अपने जीवन के हर एक निर्णय को लेना चाहिए। अब सुसमाचार हमारे हर एक क्षेत्र को छूता है और हमें एक नया दृष्टिकोण और सन्दर्भ देता है जिसके आधार पर हम अपने जीवन को जीते हैं और वह मसीह है। मसीह अब हमारे जीवन का छोटा या बड़ा हिस्सा नहीं पर वह हमारे संपूर्ण जीवन को अपने अधीन ले लेता है।
8. सुसमाचार को ग्रहण करने का अर्थ यह समझना है की मसीह को ग्रहण करने से पूर्व का हमारा जीवन, उसकी उपलब्धियाँ, उससे जुड़े हुआ सम्मान, आदर, भली और अच्छी बातें और सब कुछ हमारी व्यर्थता का स्मारक है। ऐसा नहीं है की हमारे जीवन में अधिकतर बातें अच्छी थीं और जो थोड़ी बातों की कमी थी उसे यीशु ने पूरा कर दिया। ऐसा नहीं है की हमारे जीवन की अधिकतर बातों के श्रेय का कारण हम खुद हैं और बाकी बातों का श्रेय हम यीशु को दे देते हैं। सच्चाई तो यह है की हमारी उपलब्धियाँ, सम्मान, आदर, भली और अच्छी बातों के बावजूद भी हम परमेश्वर के क्रोध के संतान थे पर यीशु की महान दया के कारण हम परमेश्वर के संतान बन पाए हैं।
निष्कर्ष:- अगर आप एक सुसमाचार प्रचारक हैं, पासवान हैं, विश्वासी हैं तो आप इन बातों का ध्यान रखें। जब भी हमें लोगों तक या लोगों के मध्य सुसमाचार को सुनाने का या समझाने का मौका मिले, हम बिना किसी मिलावट के सुसमाचार को उसकी संपूर्ण सत्यता के साथ प्रचार करें क्यों की सुसमाचार आप में ही इतना सामर्थी है की वह विश्वास करने वालों के लिए उद्धार के निमित परमेश्वर का समर्थ है।
1 Corinthians 2:2, 15:19, Acts 2:36, Colossians 1:15-17, 1 Timothy 2:5, Philippians 3:4-8, Romans 3:23-24, Ephesians 1:18-22, 2:1-7.
-Pastor Monish Mitra
Praise the Lord. Bro Francis mera ek question hai .... Main ek Christian parivaar se belong karta hoon ... .. Aur apke har ek episode ko dekhta aur follow karta hoon. .. Mera question yeh hai ki... Main jab bhi Bible ko kholta hoon aur usko read karta hoon... .. Mujhe samajhne mein thodi dikat hoti hai.... Sir pls suggest kariye ki. Main kis prakaar Bible ko read taki prabhu ke vachan ko gehraai se samajhne mein asan ho..... From Assam
ReplyDeleteBrother u can start first pray and download the hindi bible https://play.google.com/store/apps/details?id=org.ips.hinbible.hindi
DeleteAnd ask the question from all believers who truly believe on Jesus.and for more knowledge u can read commentary with bible study. really this is helpful for you bro.
Thank you pastor ji, praise the Lord ❤
ReplyDeleteThank you sir, for explaining the preaching of Gospel.
ReplyDeletePrabhu ka dhannebaad ho achche bachan ke liye or ham achche prabhu ka bachan ko samjh paate hai aapke madhem se prabhu aapko sabko bahut saari ashish de praise the lord..
ReplyDeleteThank you, pastor for wonderful teaching, Praise the Lord.
ReplyDeleteThank you, pastor for wonderful teaching, Praise the Lord.
ReplyDeleteजय मसीह की
ReplyDeleteआपने सुसमाचार से जुड़ा हुआ एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय को उजागर किया है। कुछ लोग सिर्फ यीशु के चमत्कारों का ही प्रचार करते है जबकि ये नही बताते है कि यीशु का इस धरती पर आने का कारण क्या था? आखिर वो कौन सा वजह है जिसके कारण परमेश्वर को मनुष्य रूप धारण करना पड़ा। लोग ये भी खुल कर नही बताते की सुसमाचार को अर्थात यीशु को ग्रहण करने का क्या अर्थ है और यीशु को स्वीकार करने के बाद हमे क्या कुछ त्याग करने के लिए तैयार रहना पडे़गा। यह बताना बहुत जरूरी है। आपका धन्यवाद। परमेश्वर आपको ढेर सारा आशीष दे।
Praise God Amen Amen..
ReplyDeleteVery nice Sir I like this message God bless you and your family Thank you by
ReplyDeleteThankyou for the wonderful writeup uncle.
ReplyDeleteThankyou for the wonderful writeup uncle.
ReplyDeleteआपने सही रीति से समझाया है।बहुत धन्यवाद।आजकल के अधिकतर लोग चमत्कार,चंगाई,दुनियावी आशीष की बातें ही करतें हैं। एक दुकान से चार दुकान हो गई, बड़ा घर बन गया।बच्चों की अच्छी पढ़ाई हो गई। बच्चों की अच्छे घरों में शादियां हो गई।दो बच्चे विदेश में सेटल हो गए। कुछ सेवक नाना प्रकार के ब्लेसिंग्स प्लान की लांचिंग करते रहते हैं।
ReplyDeleteNice messages pastor Thank you sir
ReplyDeleteThanks brother God bless you
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