समस्याओं की वास्तविकता - भाग 6

 

प्रिय बहनों एक फिर मैं आप सभी का अभिनंदन करती हूँ, "समस्याओं की वास्तविकता" ऑडियो सीरीज का यह छठा भाग है़। इसमें हम कारण नंबर 6 : प्रभु के लोगों से संगति करना। इस कारण पर चर्चा करेंगे।

क्या कभी आपने अंगीठी और उसमें जलते हुए कोयलों पर ध्यान दिया है़? कोयला देर तक तभी जलता है़ जब तक वह बाकी सारे कोयलों के साथ है़। यदि एक कोयला अंगीठी से बाहर कर दिया जाए, तो थोड़ी ही देर में बूझ जाता है़ पर बाकी कोयलों अंगीठी में जलते रहते हैं; यदि किसी व्यक्ति के पास उसका परिवार न हो वह अकेला हो तो वह व्यक्ति बुझा-बुझा रहता है़। 

आदम को जब परमेश्वर ने बनाया तो मेहसूस किया कि आदम अकेला है़, उसे एक साथी की जरूरत है़। जिसके साथ वह रह सकें, और दोनों मिलकर परमेश्वर के साथ संगति कर सकें।

क्या आपने कभी पढ़ाई दोस्तों के बिना की हैं? क्या कोई ऐसा परिवार होता है़ जो बिना सगे सम्बन्धियों या सदस्यों के हों? विज्ञान विषय में बल के बारे में पढ़ाया जाता है़ इसको अंग्रेजी भाषा में फोर्स कहते हैं। जब किसी भारी वस्तु को कोई एक व्यक्ति धका लगाता है़ या बल लगाता है़ तो उस अकेले व्यक्ति को बहुत मेहनत करनी पड़ती हैं। यदि उस व्यक्ति के साथ दो-चार लोग मिलकर धका लगाए तो उस पहले व्यक्ति को कम बल लगाना पड़ता हैं; इसका मतलब यह हुआ, उस व्यक्ति का भार बट गया।

ठीक इस रीति से यदि कोई भी अकेला अपनी समस्याओं से जुँज रहा हो और उसको सहायता देने के लिए उसका बोझ बटाने के लिए दो-तीन लोग और आ जाए। तो उस व्यक्ति का बोझ हल्का हो जाएगा। ठीक इस रीति से यदि आपके पास प्रभु के लोगों की संगति हैं तो हो सकता है़ वह आप अपने समस्याओं का सामना आसानी से कर पाए। 

सभोपदेशक 4:9-12 तक आइए हम इसको हम पढ़ते हैं, "एक से दो अच्छे हैं क्योंकि उनको अपने परिश्रम का अच्छा प्रतिफल मिलता है़। क्योंकि यदि उनमें से कोई एक गिरे तो दूसरा अपने साथी को उठाएगा; परन्तु उस पर हाय! कि जब वह अकेला गिरे तो उसको उठाने वाला कोई दूसरा न हो। फिर यदि दो व्यक्ती साथ सोए तो वे गरम रहते हैं परन्तु एक अकेला कैसे गरम रह सकता हैं? अकेले जीवन पर कोई तो प्रबल हो सकता है़ परन्तु दो होने से वे उसका सामना कर सकते हैं। तीन डोरियों से बँधी रस्सी, जल्दी नहीं टूटती।"

इन पदों को पढ़ने से यह समझ आता है़ कि एक से भले दों, एक के अकेले रहने पर उसको कोई बताने वाला नहीं है़ कि वह सही है़ या गलत। परमेश्वर के वचन को समझने के लिए भी हमें बाइबल शिक्षक की आवश्यकता होती हैं, ताकि हम ठीक रीति से वचन को सिख सकें और अपने जीवन में उपयोग में ला सकें, हमें अपने आप से प्रश्न पूछना हैं कि हम किन लोगों के साथ संगति करते हैं, किन-किन और चीजों के साथ समय बिताते हैं? वही चीज, वही लोग जिनके साथ हम समय व्यतीत करते हैं हमारे जीवन पर प्रभाव डालते हैं। 

यदि हम दानिय्येल की पुस्तक पढें तो जानेंगे कि बेबीलोन का राजा नबूकदनेस्सर इस्त्राएलियों को बँधी बनाकर सत्तर साल की बन्धुआई में ले गया; उसमें यहूदा के वंश से दानिय्येल, हनन्याह, मिशाएल और अजर्याह भी थे जिनको बाद में नबूकदनेस्सर राजा ने नाम दिए, उनका नाम : शद्रक, मेशक, और अबेदनगो रखा। इन सबको अपना घर, अपना समान, अपना देश, सब कुछ छोड़ना पड़ा यह आसान नहीं था और एक पराए देश में अपने दुश्मनों के बीच नई परिस्थियों में, नई समस्याओं के साथ जीना था। इस बात को बिना जाने कि वह कब तक जीवित रखें जाएंगे? 

दानिय्येल 2:17-18 पद में क्या लिखा हैं? यहाँ पर यह घटना यह कि जब बेबीलोन का राजा नबूकदनेस्सर एक सपना देखता हैं और अपनी राज की ज्योतिषों और तांत्रिको को टोना करने वालों को बुलाता हैं और कहता है़ कि  वह सपनों का अर्थ बताए नहीं तो उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे। इसको आप 5 पद में पढ़ सकते हैं, कोई भी राजा के सपनों का अर्थ नहीं बता पाता तो सबको मारने की आज्ञा निकाली जाती हैं। तब 13 पद में दानिय्येल ने राजा से विनती करके कुछ समय माँगा और साथियों के पास जाकर प्रार्थना करने का आग्रह किया। सभी मिलकर इस विषय पर प्रार्थना करें ऐसा उसने उनके सामने एक विनती रखीं, उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर मिला और दानिय्येल राजा की स्वप्न का अर्थ बता पाया दानिय्येल। 

यहाँ पर हम देखते हैं, दानिय्येल अपने कठिन समय में अपने संगति करने वालें के पास गया। जो दानिय्येल की तरह ही परमेश्वर पर भरोसा करते थे और जीवन की हर क्षेत्र में परमेश्वर की ओर ही देखते थे, दानिय्येल ने अपने भार को अपने समूह में रखा ताकि सब मिलकर एक मन होकर परमेश्वर के आगे गिड़गिड़ा सकें। 

याद रखिए, यदि हमारी सहभागिता प्रभु के वचन और उसके लोगों के साथ हो तो जो गम्भीरता से प्रभु और उसके वचनों को अपने जीवन में लेते हैं; तो आप अपने बातों को उनके मध्य रख सकते हैं।

अब बात यह उठती हैं कि हम पहचान कैसे करें कि हमारी संगति सही लोगों के साथ हैं? जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं परमेश्वर के लोगों को से प्रेम करते हैं, अब परमेश्वर की कलीसिया से प्रेम करते हैं ऐसे लोग ही प्रभु के लोग हैं। 

गलातियों 6:1,2 उसमें ऐसा लिखा हैं, "हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए तो तू जो आत्मिक हो, नम्रता पूर्वक उसे सम्भालों परन्तु सतर्क रहों कि कहीं तुम भी परीक्षा में न पड़ जाओ। एक दूसरे का भार उठा और इस प्रकार मसीही की व्यवस्था को पूर्ण करों।" 

प्रभु के लोग हमेशा एक दूसरे को चिताते हैं और सिर्फ दोष नहीं लगाते किसी से गलती होने पर उनको सही मार्गदर्शन करते हैं और खुद के जीवन के लिए भी सतर्क रहते हैं कि कहीं पाप में न पड़ जाए।

दूसरे पद में लिखा हैं एक दूसरे का भार उठाओ, कोई भी भाई या बहन समस्या में हैं तो प्रभु के वचन के अनुसार उसे समझाना, उसे चेतावनी देना। यह प्रभु के लोगों का कार्य हैं और उसकी समस्या में उसका समाधान निकालने तक प्रार्थना में लगे रहना यही प्रभु के लोगों की पहचान है़।

दूसरी घटना : हम गलातियों 2:11..... पाते हैं, यहाँ पर पौलुस पतरस का विरोध करता है़ उस पतरस का जो यीशु मसीह के साथ साढ़े तीन साल तक रहा; हर आश्चर्यकर्म को अपने आँखों से देखा यीशु मसीह के मारे जाने को और जी उठने को देखा, उसको पौलुस गलत बता रहा हैं। 

घटना यह थी कि पतरस और उसके साथ अन्य चेलें अन्ताकिया शहर में गैर-यहूदी के साथ संगति किया करते थे लेकिन जब यहूदी लोग पतरस से मिलने आए तो उन्हें खुश करने के लिए और यह दिखाने के लिए कि मैं कैसे यहूदी प्रथा को मानता हूँ? उसने गैर-यहूदी या जिनको अन्यजाति भी कह सकतें हैं, उनके साथ संगति बन्ध कर दी। उस बात पर पौलुस जो बाकी चेलें के बाद परमेश्वर को ग्रहण किया और कभी यीशु मसीह के रहते अपने आँखों से उसको देखा भी नहीं। केवल दर्शन पाया वह डाँट रहा है़ पतरस के इस व्यवहार के लिए लेकिन पतरस ने जो पौलुस से सब बातों में बड़ा है़, बुरा नहीं माना परन्तु पौलुस जो कहता, उसको पतरस समझता था, पतरस ने समझा भी।

प्रभु के लोग हमेशा आपके गलत होने पर आपको डाँट सकते हैं और साथ ही आपकी गलतियाँ भी बता सकतें है़ और हमें भी ऐसे संगति में बुरा नहीं मानना परन्तु जो हमारी आलोचना करते है़। हमारे गलत होने पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं, उनको सुनना है़।

प्रिय बहनों, गलातियों 2 अध्याय को ध्यान पूर्वक पढ़िए और जानिए विस्तार से कि यह घटना क्या थी?

प्रभु की सही संगति करने वालें लोग अपनी बढ़ाई के लिए, प्रशंसा के लिए जीवन को नहीं जीतें परन्तु परमेश्वर की प्रशंसा हो, उसका मानसम्मान बड़े, उसको तारीफ मिलें इस बात के लिए जीते हैं। 

प्रभु के लोग परमेश्वर का स्थान नहीं लेतें, परन्तु हर बात में परमेश्वर की महिमा करते है़।

प्रभु के लोग, लोगों को खुश नहीं करते परन्तु परमेश्वर को खुश करने में अपने जीवन को बिताते है़। दोगली बातें नहीं करते इसका मतलब यह नहीं कि वह कठोर होते है़, परन्तु सही को सही और गलत को गलत कहते है़। 

कुलुस्सियों 3:13 के अनुसार प्रभु के लोग क्षमा करने पर विश्वास करते है़, हम से कौन है़ जिससे गलती नहीं होती? लेकिन एक दूसरे को क्षमा करके अपने भाई बहनों को मौका देना कि वह अपने गलती पहचाने और गलत होने से बचें। यह प्रभु के लोगों का आचरण है़।

आइए हम इस पद को पढें।
"यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सहलों और एक दूसरे के अपराध क्षमा करों, जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए; वैसे ही तुम भी करों।" (कुलुस्सियों 3:13)

"तुम से प्रत्येक अपना नहीं दूसरों के हित का ध्यान रखें" (फिलिप्पियों 2:4)। 

यहाँ पर समझाया है़ सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना है़, दूसरों के भी चिन्ता करनी है़, दूसरों के अच्छे के लिए भी सोचना है़। जब हम प्रभु के लोगों के संगति में रहते है़ तो आप मेहसूस करेंगे कि न तो उनकी बातों में और न उनके व्यवहार में स्वार्थ होता है़ परन्तु हमेशा दूसरों का भला करने में वह आगे रहते है़।

1 थिस्सलूनीकियों 5:11 पद में लिखा है़, "इसलिए  एक दूसरे को प्रत्साहीत करों और एक दूसरे की उन्नति करों जैसा कि तुम कर भी रहे हों।"

यदि आप सही संगति में है़ तो प्रभु के लोग यह विश्वासी लोग aआपकी आत्मिक उन्नति के लिए हर समय प्रयास करेंगे, हर समय आपके जीवन में परमेश्वर के गुण बढ़ते जाए। ऐसी प्रार्थना करेंगे, उनके बीच हम अपने जीवन में एक बदलाव को देख सकते है़ और साथ ही आत्मिक रूप से हम बड़े और उसको भी हम देख सकते है़।

कई बार हमें डर होता है़ यदि हम अपने परेशानियों को लोगों के बिच में रखते है़ तो क्या यह सम्भव है़ कि हमाररी घर की बातों को हमारी व्यक्तिगत बातों को वह दूसरें लोगों को बता देंगे? चारों तरफ हमारी बदनामी कर देंगे? य़ा हमारी समस्याओं को जानने के बाद हमारा फायदा उठाएंगे या हमें नीचा दिखाएंगे?

प्रभु के लोग ऐसे होने चाहिए कि जो बातें आपने उनसे साझा की है़ वह दूसरों तक न पहुँच जाए, उन्हीं तक रहें। वह आपके गम्भीर घर की बातों को व्यक्तिगत लोगों की बातों को पब्लिक न होने दें। किसी ओर को पता न चलने दें, आपकी इज्जत, उनकी इज्जत हो ऐसी सोच रखते हों। 

आप ऐसे संगति में रह सकते हैं जिन पर आप भरोसा कर सकें, जिनसे आप कहने के बाद सुकून में आ जाए। यह मालूम हो कि जिन लोगों के साथ आज मैं ने अपने परेशानी को बाँटा है़ वह मेरी बातों का मजाक नहीं बनाएँगे। लेकिन प्रार्थना में उठाएँगे और जरूरत पढ़ने पर मेरी अगुवाई भी करेंगे। 

प्रिय बहनों, हमें कभी भी भूलना नहीं चाहिए कि यीशु के चेलों ने यहूदा इस्करियोती भी एक ऐसे ही चेला था, यीशु यहूदा इस्करियोती के आचरण को जानते थे फिर भी उसको जीवन भर अपने जीवन से शिक्षा देते रहे लेकिन यहूदा इस्करियोती ही नहीं सिख पाया। संगति में कोई भी कमी नहीं थी क्योंकि यीशु संगति में पाए जाते थे। कईं बार लोगों अच्छा वचन, अच्छी संगति, अच्छा मसीह माहौल मिलता है़; लेकिन वह बदलना नहीं चाहते इसलिए अपने समस्याओं से बाहर नहीं आ पातें और न ही आत्मिक उन्नति कर पाते हैं।

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