कैसे विश्वास पश्च्याताप की ओर ले जाता है


कैसे विश्वास पश्च्याताप की ओर ले जाता है

परिचय
    अगर "विश्वास" शब्द के बारे में लोगों को पूछा जाए, तो हमें भिन्न और अलग प्रतिक्रियाएं मिलेंगी। किसी व्यक्ति का विश्वास कोई मनुष्य के ऊपर होगा तो किसी और का किसी और मनुष्य के ऊपर। कोई कहेगा की वह किसी ख़ास विचारधारा पर विश्वास करते हैं, कोई कहेगा की वह खुद पर विश्वास करता है। लेकिन बाइबिल के सन्दर्भ में सोचा जाए, तो कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न हमारे सामने आते हैं। क्या विश्वास से जुड़े लोगों के भिन्न सोच और मान्यताएं उन्हें पश्च्याताप की और लेकर जा सकते हैं? विश्वास में क्या विशेषताएँ होनी चाहिए, जिसके द्वारा विश्वास एक मनुष्य को पश्चाताप की ओर लेकर जाता है? इस लेख में हम विश्वास के उन विशेषताओं को देखेंगे जो हमें पश्याताप की और लेकर जाता है।

यीशु मसीह पर विश्वास
            यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है की हमारा विश्वास किस पर है ? पश्च्याताप के लिए हमारे विश्वास का आधार कौन है? अक्सर लोग अपने आवश्यकताओं की पूर्ति, इच्छाओं की पूर्ति, भौतिक विषयों के सन्दर्भ में किसी पर विश्वास करने के बात करते हैं। यह विश्वास इस पृथ्वी पर उनके जीवन काल से सम्बंधित बातों पर केंद्रित होता है। पर यहाँ, हम किसी भौतिक वास्तु की प्राप्ति के लिए विश्वास की बात नहीं कर रहे हैं पर पश्चाताप के सन्दर्भ में विश्वास की बात कर रहे हैं। इसीलिए, स्वयं पर विश्वास, मनुष्यों द्वारा बनाये गए विचारधाराओं पर विश्वास इत्यादि हमें पश्चाताप की ओर लेकर नहीं जा सकता है। पश्चाताप के लिए हमारा विश्वास यीशु मसीह पर होना चाहिए और यीशु मसीह का जन्म इसलिए हुआ क्योंकि वह अपने लोगों को उनके पापों से छुटकारा / उद्धार देने आया था (मत्ती 1:21) और वह हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है (1 यूहन्ना 1:9)। तो यीशु मसीह में क्या विशेषताएं हैं जिन पर विश्वास करना हमें पश्चाताप की ओर ले जाएगा?

यीशु के जीवन पर विश्वास
        यीशु को संसार में देहधारी होकर (यूहन्ना1:18) आने की क्या आवश्यकता थी ? इसको समझना बहुत आवश्यक है। बाइबिल हमें अपनी वास्तविकता और पहचान के बारे में स्पष्टता से अवगत कराती है। अधिकांश लोग सोचते हैं की वह अच्छे हैं, वह भले लोग हैं, सच्चे हैं इत्यादि। पर बाइबिल इसके विपरीत बात हमारे सामने लेकर आती है। हम सब पापी हैं (रोमियों 5:17a), परमेश्वर की महिमा से रहित हैं (रोमियों 3:23), पाप में मरे हुए हैं (इफिसियों 2:1)। परमेश्वर का क्रोध हम पर बना हुआ है (इफिसियों 2:3b) और इसीलिए हम पिता परमेश्वर से दूर हैं। इसी कारण से यीशु संसार में आया क्योंकि वह पापियों को बचा सके। वह इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल करी जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे और बहुतों की छुडौती के लिये अपने प्राण दे (मत्ती 20:28)। जब हम अपनी वास्तविकता से अवगत होते हैं तो हम समझते हैं की यीशु इस संसार में क्यों आया। वह अपनी व्यक्तिगत इच्छा के कारण, अपने किसी मनोरंजन के लिए नहीं आया। हमारे जैसे पापी मनुष्यों के छुडौती के लिये अपने प्राण को देने आया था। अब, अपने वास्तविकता की सच्चाई और यीशु का संसार में आने के कारण को जानने के बाद हम उसपर विश्वास करते हैं और यह हमें पश्च्याताप की ओर ले जाता है।

यीशु मसीह के कार्य पर विश्वास
        यीशु मसीह के कार्य पर विश्वास का अर्थ क्या है ? क्या हम यीशु के द्वारा किये गए चंगाई और चमत्कार पर विश्वास करने की बात कर रहे हैं ? नहीं। यहाँ, यीशु मसीह के कार्य पर विश्वास करने का अर्थ पिता परमेश्वर के प्रति यीशु का संपूर्ण और सिद्ध आज्ञाकारिता से भरे जीवन पर, हमारा विश्वास करना दर्शाता है (फिलिप्पियों 2:8, रोमियों 5:18)। यीशु का पिता परमेश्वर के प्रति यह सिद्ध और संपूर्ण आज्ञाकारिता उसका वह कार्य है जिसपर हमें विश्वास करना है क्योंकि यह विश्वास हमें पश्चाताप की ओर ले जाएगा। अपनी इस आज्ञाकारिता के कारण यीशु हमारे लिए वह निष्पाप, सिद्ध बलिदान बन पाया जिसके द्वारा हमारे पाप क्षमा हुए (1 पतरस 1:18, इब्रानियों 9:14)। यीशु का यह महान बलिदान हमें यह अवगत करता है की यीशु ने हमारे लिए जो किया वह हम अपने लिए नहीं कर सकते थे। हम पापी थे और परमेश्वर के क्रोध को शांत नहीं कर सकते थे। हमारे निमित यीशु वह बलिदान बना जिससे परमेश्वर का क्रोध शांत हुआ। अब, हमारे उद्धार के निमित यीशु के सिद्ध और संपूर्ण आज्ञाकारिता से भरे जीवन के महत्व को जानने के बाद हम उसपर विश्वास करते हैं और यह हमें पश्च्याताप की ओर ले जाता है।

निष्कर्ष
हमें यह स्मरण रखना होगा की यीशु क्यों इस संसार में आया ओर उसने इस संसार में रहकर कैसा जीवन जिया। वह यह सब केवल हमारे प्रति अपने प्रेम को दर्शाने के लिए किया। ओर इसका सबसे उत्तम प्रतिउत्तर यह होगा की हम उसपर विश्वास करें जिसके फलस्वरूप हम पश्च्याताप कर सकेंगे।

- Ps Monish Mitra

5 comments:

Thank you for reading this article/blog! We welcome and appreciate your opinion in the comments!