यीशु ने बपतिस्मा क्यों लिया ?

यीशु ने बपतिस्मा क्यों लिया ?
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने भी यीशु से यही प्रश्न पूछा था। इसके उत्तर मे यीशु ने कहा कि सारी धर्मितका को पूर्ण करने के लिए उसका बपतिस्मा लेना उचित है (मत्ती 3:14-15)। जिस प्रकार प्रथम आदम ने परमेश्वर के आज्ञा का उल्लंघन किया और संसार मे पाप और मृत्यु को लेकर आया, ठीक उसके विपरीत यीशु वो अंतिम आदम बनकर आया ताकी वो इस संसार मे परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन सिद्धता के साथ करे। यह उसकी सेवकाई का उद्देश्य था। जिन बातों को आदम ने अपनी अनाज्ञाकारित के द्वारा बिगाड़ दिया था, उन सब बातों को अब यीशु ने अपने आज्ञाकारित के द्वारा ठीक कर दिया। ईश्वरविज्ञानिय भाषा मे इसे यीशु की सक्रिय आज्ञाकारित कहा जाता है। 

मनुष्य अपने पापों के कारण परमेश्वर के क्रोध का संतान है और इसलिए मनुष्य और परमेश्वर के मध्य बैर और अशान्ति है (इफिसियों 2:1-3, रोमियों 1:20-21, 8:6-7)। परमेश्वर के क्रोध को शांत करने के लिए, उस अशान्ति और बैर की दीवार को हटाने के लिए यह आवश्यक है की मनुष्य परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार एक सिद्ध जीवन जिए और परमेश्वर को प्रसन्न करे, लेकिन ऐसा कर पाना किसी भी मनुष्य के लिए असंभव है (रोमियों 3:20)। 

इसलिए यीशु देहधारी होकर शरीर मे इस संसार मे आया जिससे की वो अपने शरीर मे होकर व्यवस्था और धार्मिकता की हर एक मांग को, कार्य को पूरा करे, शरीर मे निष्पाप और पापरहित जीवन को जिये, शरीर मे दुख उठाए, शरीर मे मारा जाए, शरीर मे गाढ़ा जाए, शरीर मे जी उठे और शरीर मे स्वर्ग उठा लिया जाए। दूसरे शब्दों मे यीशु ने अपनी मानवता मे होकर उस हर एक कार्य को सिद्धता के साथ पूर्ण किया और परमेश्वर के क्रोध को शांत किया, और क्रूस पर हमारे बदले, हमारे स्थान मे, हमारा प्रतिस्थापन बनकर अपने प्राण को भी दे दिया। 

क्योंकि उसकी सक्रिय आज्ञाकारिता सिद्ध थी, वो एक सिद्ध बलिदान भी बन सका और उसने परमेश्वर के क्रोध को सदा के लिए संपूर्ण रूप से शांत कर दिया। यीशु का बपतिस्मा लेना उस सक्रिय आज्ञाकारिता का एक हिस्सा था जिसके द्वारा यीशु ने परमेश्वर के सिद्ध मांग के अनुसार सारी धर्मितका को सिद्धता के साथ पूर्ण कर दिया (रोमियों 5:18-19, यूहन्ना 1:29, 8:29, 1 यूहन्ना 3:5, 1 पतरस 1:18-19, 2 कुरिन्थियों 5:21, इब्रानियों 2:17, 4:15, 7:26, फिलिप्पियों 2:5-8)।

इसलिए यीशु का बपतिस्मा लेना आवश्यक और उचित था।

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