Begotten Son Jesus

एकलौता पुत्र – यीशु ख्रीष्ट


          हम लोग प्रायः अपनी आम/सामान्य भाषा मे कहते हैं कि “परमेश्वर ने हमे बचाने के लिए अपने एकलौते पुत्र को इस संसार मे भेज दिया। इस बात को हम यूहन्ना 3:16 मे भी देखते जहाँ लिखा है कि पिता ने अपने एकलौते पुत्र को इस संसार मे भेजा...। इसे लेकर कई लोगों का कहना है कि, यीशु ख्रीष्ट का परमेश्वर का एकलौता पुत्र होना दर्शाता है कि वह पिता से कम है। पुत्र तो पिता की ओर से आया हैपिता से उत्पन्न हुआ हैपिता के ओर से भेजा गया हैइसलिए पिता तो पुत्र से बड़ा हैउच्च हैसामर्थी हैअधिक अधिकार रखनेवाला और महान है। तो प्रश्न यह है कि अगर यीशु पुत्र हैतो वह कब उत्पन्न हुआअगर वह उत्पन्न हुआ है, तो क्या वह एक सृष्टि नहीं हैऐसे कई प्रश्न हमें विचलित कर सकते हैं और हम इन प्रश्नों से भाग नहीं सकते हैं, इन प्रश्नों को अनदेखा नहीं कर सकते हैं। तो आइएइस लेख के द्वारा हम यीशु के एकलौते पुत्र होने से जुड़ी हुई कुछ ईश्वरविज्ञानिय बातों को समझने का प्रयास करें ताकि हम यीशु ख्रीष्ट के एकलौते पुत्र होने काउसके उत्पन्न होने का सही अर्थ स्वयं समझ सकें और फिर दूसरों को भी समझा सकें। 

 परमेश्वर का (एकलौता) पुत्र -  

सामान्यतः जब हम किसी परिवार मे उनके पुत्र की बात करते हैंहमारा यह अर्थ होता है कि वह पुत्र शरीर के भाव मे जना गया है जोकि एक स्वभावविक शारीरिक क्रिया है। लेकिन इसके साथ हम यह भी समझते हैं कि पुत्र होने के कारण वह संतान अपने पिता से कम हैवह पिता के समान नहीं है और पिता के तुल्य भी नहीं है। 

चौथी शताब्दी के समय इसी विषय को लेकर एक विवाद उठा था जब कुछ लोगों ने कहा कि पुत्र (यीशु ख्रीष्ट) पिता के समान नहीं है और पिता के तुल्य भी नहीं है, क्योंकि वह पिता से उत्पन्न हुआ है। यह त्रिएकता की शिक्षा के विरुद्ध एक विधर्म था। इस विधर्म का खंडन करने हेतु कलीसिया के अगुवों ने एक शब्दावली का प्रयोग किया था, जो Eternal Generation of the Son कहलाता है और इसे हम “पुत्र का शाश्वतीय उद्गम” के रूप मे समझ सकते हैं। इसके द्वारा वह पुत्र और पिता के मध्य की एकता और भिन्नता को स्थापित करना चाहते थे। पुत्र तो पिता से भिन्न है लेकिन वह पिता के तुल्य भी है, और पिता के समानता मे भी है। पुत्र का शाश्वतीय उद्गम हमे यह समझने के लिए सहायता करता है कि पुत्र के उद्गम होने का अर्थ क्या है। अगर वह अनन्त है और आदि से है (यूहन्न 1:1-2) तो फिर वह पिता से उद्गम कैसे हो सकता है?

        हम त्रिएकता के संदर्भ मे पुत्र के उद्गम होने की बात करते हैं। इसके द्वारा हम यह समझाना चाहते हैं कि पुत्र का वही सारतत्व (essence) है जो पिता का है। सरल भाषा में, सारतत्व वह है जो किसी को मौलिकता देता हैंजो अनिवार्यता से उसके पास होता ही हैऔर जिसके आधार पर वह अपनी पहचानअपने अस्तित्व को बनाए रखता है। अर्थातपुत्र का उद्गम होनाउसका आनाउसका उत्पन्न होना पिता के सारतत्व से हुआ है और यह शाश्वतीय/अनन्तकालीन कार्य है।

 पिता और पुत्र के मध्य शाश्वतीय/अनन्तकालीन सम्बंध -

जब हम पुत्र का पिता से उद्गम होने की बात करते हैं तो हम इसे एक मानवीय दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रलोभित होते हैंयह एक बड़ी समस्या है। जिस प्रकार हम प्राणियों में किसी पुत्र को पिता का संतान समझा जाता हैहम यीशु ख्रीष्ट को उसी दृष्टिकोण और समझ से परमेश्वर पिता की संतान के रूप मे देखने और समझने का व्यर्थपूर्ण प्रयास करने लगते हैं। हम भूल जाते हैं कि, पुत्र का पिता से उद्गम होना एक मानवीय संदर्भ मे नहीं हुआ है क्योंकि यह तो एक शाश्वतीय/अनन्तकालीन उद्गम है।

इसलिएजब हम पुत्र के शाश्वतीय/अनन्तकालीन उद्गम की बात करते हैंतो इसका तात्पर्य पुत्र का देहधारी होना नहीं हैहमारे पापों से हमे बचाने के लिए पुत्र का संसार मे आने के बारे मे नहीं है। शाश्वतीय/अनन्तकालीन उद्गम केवल पिता और पुत्र के सम्बन्ध को दर्शाता हैइसका एक ही उद्देश्य है और वो केवल पिता और पुत्र के सम्बन्ध को दिखाना है। यह सम्बन्ध शाश्वतीय/अनन्तकालीन हैसमय से परे हैसृष्टि से पहले का हैआदि से है। इसी विचार को नीकिया महासभा मे गठित विश्वास वचन मे देखा जाता है जहाँ यीशु ख्रीष्ट के विषय में इस प्रकार कहा गया है - 

Lord Jesus Christ, the only begotten Son of God, begotten from the Father before all ages, Light of Light, True God from True God, begotten, not made, of one substance with the Father, through whom all things are made 

प्रभु यीशु ख्रीष्ट परमेश्वर का एकलौता पुत्र हैआदि से परमेश्वर से उद्रम हुआ हैप्रकाश का प्रकाशपरमेश्वर से परमेश्वरउद्रम हुआ हैरचा नहीं गयापिता के साथ सारतत्व मे एक हैजिसके द्वारा सब कुछ रचा गया है। 

इसलिएयीशु ख्रीष्ट के पुत्रत्व में पिता के साथ उसके इस सम्बन्ध का आधार केवल शाश्वतीय/अनन्तकालीन है और इसी सन्दर्भ में ही है। इसका सृष्टिसमयउद्धार का कार्य, उद्धार की योजनायीशु का देहधारी होकर संसार मे आनासंसार और मनुष्य के अस्थितत्व इत्यादि से कोई सम्बन्ध और लेन-देन नहीं है। अगर संसार न भी होताकोई भी रचना नहीं हुई होतीतो भी यीशु ख्रीष्ट, पिता का पुत्र होता, क्योंकि यीशु ख्रीष्ट का पुत्र होना उसके शाश्वतीय उद्गम पर आधारित है। ऐसा कोई समय नहीं था जब पुत्र का अस्थितव नहीं था। चौथी शताब्दी मे रहने वाले ग्रेगोरी नामक कलीसिया के अगुवे ने कहा “यीशु ख्रीष्टपरमेश्वर से उद्रम तो हुआपरन्तु उसके अस्तित्व का आरंभ कभी नहीं हुआ। अर्थातपुत्र का अस्तित्व शाश्वतीय और अनन्तकालीन है; वो सदाकाल से था।  

कई ईश्वरविज्ञानी इस विषय को ठोस ईश्वरविज्ञान (Archetypal Theology) के श्रेणी मे रखते हैं, क्योंकि यह त्रिएकता मे पिता और पुत्र के उस सम्बन्ध के विषय में है जो परमेश्वरत्व का भाग तो हैपरन्तु यह त्रिएकता के बाहर पाया और जाना नहीं जा सकता है। परमेश्वर ने इसे केवल अपने परमेश्वरत्व के भीतर सीमित करके रखा है और ऐसा करना उसका उचित अधिकार भी है।  

यही कारण है कि यीशु ख्रीष्ट का पुत्र होना उसे परमेश्वर से कम नहीं बना देतापरमेश्वर से नीचा नहीं ठहरा देता जैसा कि मनुष्यों मे होता है। पुत्र होते हुए भी वह परमेश्वर की समानता में हैपरमेश्वर की महिमा का प्रकाश है और उसके तत्व का प्रतिरूप है क्योंकि पुत्र और पिता सारतत्व में एक हैं। अपने ईश्वरत्व मे पुत्र इसलिए पिता के साथ समान है क्योंकि जो सारतत्व पिता का हैवही पुत्र का भी है और यह सारतत्व पुत्र में इसलिए पाया जाता है क्योंकि उसका उद्गम पिता से है और यह उद्गम शाश्वतीय है। यही कारण भी है कि नीकिया महासभा मे गठित विश्वास वचन में लिखा है कि पुत्र रचा नहीं गया परन्तु वह आदि से परमेश्वर से उद्रम हुआ है। क्योंकि वह आदि से है और उसमें पिता का सारतत्व हैतो पुत्र भी शाश्वत है। अगर वह शाश्वत है तो वह हम मनुष्यों के जैसा एक प्राणी नहीं है। और अगर वह हमारे जैसा प्राणी नहीं है तो उसका उत्पन्न होना समयकाल मे सीमित नहीं हो सकता है। इसलिएउसका उत्पन्न होना तो शाश्वतीय ही है।   

पिता और पुत्र की भिन्नता - 

पिता और पुत्र के दो व्यक्तियों (personsमे भिन्नता केवल पुत्रत्व के आधार पर है जिसके कारण हम त्रिएकता मे भिन्न व्यक्तियों को देखते हैं भले ही उनका सारतत्व एक है। अगर ऐसा न हो तो हम एक और विधर्म का हिस्सा बन जाएंगे जिसे  “Sabellianism” कहा जाता है। इसे Sabellius / सबेलियस नामक ईश्वरविज्ञानी ने 215 A.D मे रोम मे रहते हुए आरम्भ किया था। उनका कहना था कि, "पिता, पुत्र, पवित्र आत्मा तीन अलग अलग व्यक्ति नहीं हैं"। वे लोग तीन अलग अलग रूप / modes मे कार्य करते हैं। उनका यह भी कहना था कि पिता, पुत्र, पवित्र आत्मा मे कोई भिन्नता नहीं है। एक ही परमेश्वर है जो कभी पिता बन जाता हैकभी पुत्र और कभी पवित्र आत्मावो अलग अलग रूप ले लेता है। यह विधर्म त्रिएकता के तीन व्यक्तियों मे उस भिन्नता को नकारता है जो शाश्वतअनंत और अनादि है। रोम निवासी Hippolytus, Tertullian और आलेक्सनडेरिया निवासी Dionysius ने उनका विरोध किया था और इस विधर्म का खंडन किया था। 220 A.D मे Sabellius / सबेलियस को विधर्मी घोषित कर दिया गया और उसे कलीसिया से निकाल दिया गया। उस समय के विद्वानों ने इसका खंडन किया और अगले 100 वर्षों मे यह विधर्म लोप हो गया लेकिन 20 शताब्दी मे फिर से यह आरंभ हुआ जिसे आज Modalism / रूपवाद कहा जाता है।      

निष्कर्ष  - 

पिता उत्पन्न नहीं हुआ इसलिए उसने अपने सारतत्व को कहीं से पाया या किसी से लिया नहीं है। किसी ने पिता को सारतत्व प्रदान नहीं किया और संचारित नहीं किया। तो इसलिए पिता का सारतत्व शाश्वतीय है और क्योंकि पिता ने पुत्र को इस शाश्वतीय सारतत्व संचारित किया हैतो पुत्र भी शाश्वत है। जब पुत्र पिता से उत्पन्न हुआउसका उद्रम हुआ, तो वह उस सारतत्व मे पाया गया जो पिता का भी है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि पिता के सारतत्व मे विभाजन हो गयावह सारतत्व बट गया (division), न ही उस सारतत्व का गुणा हुआ (multiply) और न ही वह सारतत्व घट गया। पिता ने जब पुत्र को उत्पन्न किया तो उसने पुत्र को अपना सारतत्व संचारित किया जो उसमे है। अब पुत्र का सारतत्व एक बटा हुआअधूरा सारतत्व नहीं है परन्तु वह सारतत्व है जो पिता की समानता में है। इसलिए नीकिया महासभा मे गठित विश्वास वचन मे पुत्र के विषय मे कहा गया कि वो “प्रकाश का प्रकाशपरमेश्वर से परमेश्वर” है। 

तो हम देख सकते हैं कि, कैसे और क्यूँ यीशु ख्रीष्ट अपने पुत्रत्व मे किसी मानवीय पुत्र से भिन्न है। इस लेख के आरंभ मे हमने देखा था कि इस संसार मे पुत्र और पिता का सम्बंध कैसा होता हैउन्मे अधिकारसामर्थसमानता को लेकर एकता नहीं है। लेकिन इसके विपरीतपुत्र (यीशु ख्रीष्ट) और पिता के मध्य समानता है। यह यीशु ख्रीष्ट के पुत्रत्व को भिन्नअनोखाअद्वितीय (unique) बनाता है। न तो ऐसा कोई और पुत्र थान है और न होगा। इसलिए यीशु ख्रीष्ट को एकलौता पुत्र कहा गया है।  

By Monish Mitra

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