Firstborn Son Jesus

पहलौठा - यीशु ख्रीष्ट

 परिचय:

        बाइबल में यीशु को सारी सृष्टि में पहलौठा कहा गया है। कई लोग जबपहलौठाशब्द पढ़ते हैं तो, इस शब्द को एक सामान्य रीति से, समाज में प्रयोग किए जाने वाले पहलौठा शब्द के जैसा समझने लगते हैं। सामान्यतः जब एक परिवार में एक से अधिक संतान होते हैं तो फिर उस परिवार के बड़े/ज्येष्ठ संतान को पहलौठा कहा जाता है क्योंकि वो सबसे पहले पैदा हुआ था। ठीक वैसे ही लोग सोचते हैं कि यीशु पहले से ही परमेश्वर का पुत्र है और फिर बाद में हम लोग यीशु पर विश्वास करने के द्वारा परमेश्वर के संतान बन गए, इसलिए यीशु पहलौठा है। अगर हम यह सोचें कि यीशु पहलौठा है क्योंकि परमेश्वर ने हमें रचने से पहले यीशु को रचा है, तो हम यह कह रहे हैं कि यीशु एक रचा हुआ प्राणी है। 

            जब हम यहूदी संस्कृति को देखते हैं तो यह पाते हैं कि वहाँ पहलौठा होना पुत्र को संदर्भित करता है। क्योंकि उस संस्कृति में अर्थात एक यहूदी परिवार में पहलौठे को एक विशेषाधिकार प्राप्त होता था, इसलिए बाइबल में इस शब्द का पयोग प्रायः एक आलंकारिक रूप से श्रेष्ठता को, प्रतिनिधित्व को दर्शाने के लिए किया जाता था। तो आइए, इस लेख के द्वारा हम यीशु के पहलौठे होने के अर्थ को समझने का प्रयास करेंगे।   

पुराने नियम मे पहलौठा शब्द का प्रयोग :

                पहलौठा शब्द केवल नए नियम में ही नहीं परन्तु पुराने नियम में भी प्रयोग किया गया है। निर्गमन 4:22-23, 2 इतिहास 21:1-3 और भजन 89:27 में भी इस शब्द का प्रयोग किया गया है। 

निर्गमन 4:22-23 में परमेश्वर ने इस्राएल को अपना पहलौठा कहा है। क्या इस्राएल से पहले कोई राज्य नहीं थे? क्या उनसे पहले संसार में लोग नहीं थे? क्या परमेश्वर के और भी संतान थे जिनमें से इस्राएल पहलौठा है? ऐसा कुछ भी नहीं है; इस्राएल का पहलौठा होना उसका परमेश्वर के साथ एक विशेष सम्बंध होने को दर्शाता है। इस्राएल के साथ परमेश्वर का एक अनोखा सम्बंध है, वो परमेश्वर के लिए प्रिय है, विशेष है और इसलिए परमेश्वर इस्राएल को अपना पहलौठा कहकर सम्बोधित करता है।     

                2 इतिहास 21:1-3 में हम पाते हैं कि यहोशापात के कई संतान थे। पर पहलौठे के साथ एक विशेष पद, श्रेणी और प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है जिसके कारण भले ही बाकी संतानों को यहोशापात ने बहुत दान दिए, परन्तु यहोराम को राजा का पद दिया गया और वो यहोशापात के बाद राज्य करने लगा। अर्थात यह है कि पहलौठा होना एक विशेष पद, श्रेणी और प्रतिष्ठा को दर्शाता है। 

            फिर भजन 89:26-29 में भी हम पहलौठे के बारे में पढ़ते हैं। यहाँ पहलौठे का अर्थ हम एक अधिकार के रूप मे देख सकते हैं जहां उसे पृथवि के राजाओं पर प्रधान ठहराने की बात हो रही है। दाऊद के पहले भी बहुत राजा थे, अन्य देशों मे भी कई राजा थे और ऐसा नहीं था कि दाऊद पृथ्वी का प्रथम राजा था और इसलिए उसे पहलौठा कहा गया है। वो अपने परिवार में भी पहलौठा पुत्र नहीं था। तो यहाँ दाऊद के पहलौठे होने का अर्थ एक विशेष अधिकार और प्रधानता को दर्शाता है जिसे परमेश्वर ने दाऊद को दिया। 

                पुराने नियम में यह बहुत स्पष्ट है कि पहलौठा न केवल पहला पुत्र है परन्तु इसके साथ यह  एक ऐसे श्रेणी को दर्शाता है जो सामर्थ, अधिकार और अगुवाही से जुड़ा हुआ है; यह एक विशिष्ठता को दर्शाता है। पुराने नियम में हम यह भी देखते हैं कि इस विशिष्ठता पर बल भी दिया गया है। जब हम इसहाक और याकूब को देखते हैं तो पाते हैं कि यह क्रम मे पहलौठे नहीं थे लेकिन इन्हे एक विशेष योजना के अनुसार चुना गया और अधिकार दिया गया। 

                इन खंडों में, जब "पहिलौठे" शब्द का उपयोग किया जा रहा है, तो यह परमेश्वर के दृष्टि में श्रेष्ठता, एक विशेष गुण या महत्व को दर्शाता है। तो हम देख सकते हैं कि पहलौठा होना एक क्रम को नहीं दर्शाता है कि कौन पहले जन्म लिया है परन्तु यह एक पद, श्रेणी को दर्शाता है जिससे प्रतिष्ठा और अधिकार जुड़ा हुआ है।       

नए नियम में यीशु का पहलौठा होना

                नए नियम में भी हम पहलौठे शब्द के बारे में देखते हैं। नया नियम की पुस्तकें यूनानी भाषा मे लिखी गई है और पहलौठे के लिए यूनानी भाषा में PRŌTOTOKOS / πρωτότοκος / प्रोटोटोकोस शब्द का प्रयोग किया गया है। यह शब्दप्राथमिकताके विचार को दर्शाता है।   

               कई लोग कुलुस्सियों 1:15 के आधार पर यह कहते हैं कि यीशु का सृष्टि में पहलौठे होने का अर्थ है सबसे पहले रचा जाना। अर्थात परमेश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तो सबसे पहले उसने यीशु को रचा और फिर सब वस्तुओं की रचना की। तो यहाँ यीशु के पहलौठे होने के अर्थ को समझने के लिए हमे 15-18 पद पढ़ना होगा। पद 15 इस बात से आरंभ होता है कि यीशु अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है। यह बात उसके पहलौठे होने से जुड़ी विशेषता और विशिष्ठता को और भी स्पष्ट करता है। यीशु का अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप होना वो गुण / विशेषता है जिसके कारण वो पहलौठा है, वो हर एक बातों के ऊपर प्राथमिक है। फिर 16 पद में उसके पहलौठे होने का कारण दिया गया है और उसके अनुसार यह पाया जाता है कि सब कुछ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। अर्थात यीशु एक सृष्टि नहीं है परन्तु वो तो स्वयं सृष्टिकर्ता है। अगर यीशु को रचा गया होता तो फिर उसके लिए यूनानी भाषा में prōtoktistos शब्द का प्रयोग हुआ होता जिसका अर्थ हैपहले रचा गया। और अगर यीशु पहले रचा गया प्राणी होता तो फिर वो ईश्वरीय नहीं होता। अगर वो ईश्वरीय न होता तो फिर वो त्रिएकता का द्वितीय जन नहीं हो सकता था। और ऐसा कहना त्रिएकता के विरुद्ध विचार और शिक्षा देना है। इसलिए यीशु कोई सृष्टि नहीं है वरण 19 पद मे हम पढ़ते हैं कि यीशु में सारी परिपूर्णता वास करती है। यीशु में वो सब है, वो उन सब बातों से परिपूर्ण है जो उसके ईश्वरत्व का कारण है। JEHOVAH'S WITNESSES वाले विधर्मी यीशु को एक रचना, सृष्टि मानते हैं। पद 15 के अनुसार उसका तर्क है कि परमेश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तो सबसे पहले उसने यीशु को रचा और फिर सब वस्तुओं की रचना की। इस तर्क को सही ठहराने के लिए उन्होंने पद 16 में एक शब्द को जोड़ दिया है जो केवल उनके बाइबल में ही पाया जाता है। सामान्य अनुवाद में हम पद 16 में पाते हैं किक्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुईलेकिन उनके बाइबल में लिखा है किक्योंकि उसी में अन्य  सारी वस्तुओं की सृष्टि हुईअन्यशब्द को जोड़कर वो अपना तर्क देते हुए कहते हैं कि सबसे पहले यीशु की सृष्टि हुई और फिर यीशु ने अन्य सब वस्तुओं की सृष्टि की।  मूल भाषा मे ऐसी कोई पांडुलिपि नहीं है जिसके आधार पर वो पद 16 मेंअन्यशब्द को जोड़ने को सही ठहरा सकते हैं। यह केवल उनकी कल्पना है जसके आधार पर वो पद 16 मेंअन्यशब्द को जोड़ दिया है।  

                    एक ध्यान देने वाली बात यह भी  है कि पद 15 का हिन्दी अनुवाद कहता है कि यीशु सारी सृष्टि में पहिलौठा है लेकिन मूल भाषा के अनुसार एक बेहतर अनुवाद ऐसा होगा -यीशु सारी सृष्टि के ऊपर पहिलौठा है। मूल भाषा में πάσης (पासेस) शब्द का अर्थके ऊपरहोता है, न किमेंहोता है। तो यीशु का सारी सृष्टि के ऊपर पहलौठा होना यीशु के विशेषता और विशिष्ठता को दर्शाता है। 

                    फिर पद 18 में यीशु को मरे हुओं में से जी उठने वालों में पहिलौठा कहा गया है। 1 राजा 17:17-24, 2 राजा 4:18-37, 13:20-21, लुका 7:11-17, 8:40-56, यूहन्ना 11:39-44 में हम उन लोगों के विषय में पढ़ते हैं जो मृत्यु से जी उठे और यह घटनाएं यीशु के मृत्यु से पहले की हैं। तो फिर यीशु को पद 18 में मरे हुओं में से जी उठने वालों में पहिलौठा क्यों कहा गया है ? यह यीशु के विशेषता को दर्शाने के लिए है। यीशु जब मरे हुओं में से जी उठा तो वो बाकी लोगों के समान फिर मर नहीं गया परन्तु वो सदा काल के लिए जीवित है। उसकी यह विशेषता उसको एक उच्च श्रेणी, पद, एक प्राथमिकता, अधिकार और श्रेष्ठता देती है जो किसी और के पास नहीं है। इसलिए यीशु को यहाँ पर पहलौठा कहा गया है। पद 18 के अंत में यह भी कहा गया है कि यह सब इसलिए है कि यीशु सब बातों मे प्रधान ठहरे। तो यीशु का पहलौठा होना उसके प्रधानता से जुड़ा हुआ है न कि इस बात से कि वो सबसे पहले रचा गया या था या फिर इस बात से कि वो परमेश्वर के पुत्रों में से पहला पुत्र है। यही तर्क हम प्रकाशित वाक्य 1:5 में भी देख सकते हैं जहां यीशु को मरे हुओं में से जी उठने वालों में पहिलौठा कहा गया है।  

                    यीशु का पहलौठा होना पिता के साथ उसके विशेष सम्बंध को दर्शाता है जिसके कारण वो सब बातों में प्रधान ठहरे और उसमें सब परिपूर्णता वास करे। पद 13 में इसी बात को कहा गया है जब यीशु को परमेश्वर का प्रिय पुत्र के रूप में दर्शाया गया। इसी प्रिय पुत्र में हमारे पापों की क्षमा है, और यही प्रिय पुत्र अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप भी है। इन सब कारणों से पुत्र की श्रेणी सबसे भिन्न है, उसका पद सबसे ऊंचा है, वो श्रेष्ठ है और इसलिए वो पहलौठा भी है; यीशु ख्रीष्ट  सभी बातों में श्रेष्ठ है। पद 15-18 के अनुसार वो सृष्टिकर्ता है और पद 19-20 के अनुसार वो छुटकारा देने वाला है, सब वस्तुओं का मेल कराने वाला है।      

                    ठीक वैसे ही जब इब्रानियों 1:6 में यीशु के पहलौठे होने की बात को पढ़ते हैं तो हमें वहाँ के संदर्भ को देखना होगा। तो अगर हम पद 1-9 को देखते हैं तो हम पाएंगे कि लेखक यह कह रहा है कि यीशु स्वर्गदूतों से श्रेष्ठ है। इस खंड का संदर्भ यही है कि यीशु सावर्गदूतों से श्रेष्ठ है और वो आराधना के योग्य है। तो पद 6 में लेखक यीशु के विषय में कहता है कि वो आराधना के योग्य है, स्वरगदुत उसकी आराधना करेंगे, वो ईश्वरीय है, स्वर्गदूतों के ऊपर यीशु की प्रभुता है, उसका राज्य युगानुयुग का है। यहाँ पर मुख्य विचार यह है कि यीशु आराधना के योग्य है। सभी स्वरगदुत उसकी आराधना करते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि आराधना के योग्य केवल परमेश्वर है (निर्गमन 34:14)। और परमेश्वर अपनी महिमा किसी और को नहीं देता है (यशायाह 42:8, 48:11ब)। लेकिन इस खंड के अनुसार वो महिमा यीशु के पास है क्योंकि उसकी आराधना हो रही है। अगर ऐसा है तो यीशु एक सृष्टि नहीं है, वो एक रचना नहीं है; वो स्वयं परमेश्वर है। इसलिए उसका पहलौठा होना यह नहीं दर्शाता है कि उसका जन्म हुआ है परन्तु यह दर्शाता है कि वो विशेष है, श्रेष्ठ है और अपने श्रेणी में वो सबसे ऊंचा और भिन्न है; इसलिए वो पहलौठा है।                  

निष्कर्ष

अतः, हम इस बात को देख सकते हैं कि यीशु ख्रीष्ट कोई सृष्टि नहीं है, वो रचा नहीं गया है और न ही उसका कोई आरंभ है। वो तो स्वयं सृष्टिकर्ता है जो सब वस्तुओं को स्थिरता देता है। उसका पहलौठा होना उसके उत्पन्न होने के किसी क्रम को नहीं दर्शाता है कि वो एक समय उत्पन्न हुआ और फिर सब वस्तुओं का उत्पन्न हुआ। उसका पहलौठा होना उसकी विशेषता, विशिष्ठता, अधिकार, प्राथमिकता, विशेष श्रेणी को दर्शाता है जो उसके ईश्वरत्व से जुड़ा हुआ है।        

By Monish Mitra

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