जो चाहो विश्वास से मांगों और वो मिल जाएगा

 

जो चाहो विश्वास से मांगों और वो मिल जाएगा (मरकुस 11:24)

    यीशु ने अपने चेलों से कहा कि “जो कुछ तुम प्रार्थना में मांगते हो विश्वास करो कि पा चुके हो, और वो तुम्हें मिल जाएगा।”

    इस पद के आधार पर कई लोग यह सोचते हैं कि उन्हे “जो कुछ” चाहिए उसे वो विश्वास के साथ मांग सकते हैं और उन्हे वो मिल जाएगा। कई प्रचारक इसे “जो भी चाहिए उसे प्रार्थना में नाम लेकर अधिकार सहित दावा करना या मांगना” कहते हैं। उनका मानना यह है कि अगर हम वास्तव में विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर हमारी सभी मांगों को पूरी करेगा। तो क्या वास्तव में हम अपनी प्रार्थना में विश्वास के साथ जो चाहे मांग सकते हैं?

सर्वप्रथम, हमें यह समझना है कि जब भी हम ऐसे चुनौतीपूर्ण या कठिन खंड को पढ़ते हैं, तो हमें उसके तात्कालिक और वृहद या आस पास के संदर्भ पर ध्यान देना चाहिए। उसके अनुसार हम यह देख सकते हैं कि पद 23 में एक पर्बत के उखाड़े जाने और समुद्र में जा पड़ने की बात को कहते हुए यीशु ने कहा (पद 24) कि “जो कुछ तुम प्रार्थना में मांगते हो विश्वास करो कि पा चुके हो, और वो तुम्हें मिल जाएगा।”

    एक पर्बत के उखाड़े जाने और समुद्र में जा पड़ने का कहना उस समय के एक सामान्य रूपक का प्रयोग था। किसी कठिन समस्या या परिस्थिति के समाधान या उसे हटाए जाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था। यहां एक प्रश्न यह भी है कि यीशु किस पर्बत कि बात कर रहा था। ऐसा प्रतीत होता है कि यह कोई ऐसा पर्बत है जिसे लोग जानते थे और उस समय भली भांति समझ भी रहे थे क्योंकि पद 23 में “इस पर्बत” लिखा गया है।

जब हम इस घटना के वृहद संदर्भ पर ध्यान देते हैं तो कुछ बातें स्पष्ट हो जाती हैं। मरकुस 11 अध्याय का आरम्भ यरूशलेम में यीशु के विजयी प्रवेश के साथ होता है। अगले दिन जब यीशु यरूशलेम के मंदिर में जाता है तो वहां पर उसे दुर्व्यवस्था दिखाई देती है। वह कहता है कि लोगों ने इस प्रार्थना के भवन को डाकुओं की अड्डा बना दिया है। उस मंदिर में यीशु ने आत्मिक ढोंग और पाखंडपन को देखा। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि यह स्थान एक पर्बत था अर्थात यरूशलेम का मंदिर एक पर्बत के ऊपर बनाया गया था।

वृहद संदर्भ में हम यह भी पाते हैं कि यीशु ने अंजीर के एक हरे पेड़ को उसमें फल ना होने के कारण शाप दिया था और वो सुख गया था। बाइबल में अंजीर का पेड़ इस्राइल को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है। उस पेड़ का फ़लरहित होना इस्राइल के आत्मिक स्थिति को दर्शाता है। उस पेड़ में फल ना होने के कारण वो यीशु के लिए किसी काम का ना था और वैसे ही इस्राइल के लोगों का जीवन परमेश्वर के सन्मुख ग्रहणयोग्य नहीं था। यरूशलेम के मंदिर का डाकुओं का अड्डा बन जाना यही दर्शाता है कि वो आत्मिक रीति से फ़लरहि थे।

    इसलिए, जब चेलों ने देखा कि अंजीर का पेड़ सुख गया है और उसे देखकर चेले आश्चर्य करने लगे, तो यीशु ने पर्बत के उखाड़े जाने और समुद्र में जा पड़ने के रुपक को देते हुए न्याय की बात कर रहा था। अर्थात, यरूशलेम पर्बत पर स्थित उस मंदिर की धर्मिव्यवस्था जिसे वहां के धर्मगुरुओं ने रूढ़िवादी बना दिया था, एक ठोस और मजबूत धर्मिव्यवस्था बना दिया था, नियमों पर आधारित बना दिया था, जिसके द्वारा लोगों का आत्मिक शोषण हो रहा था, उस व्यवस्था के ऊपर अब परमेश्वर का न्याय होने पर था। इस धर्मिव्यवस्था का आधार व्यवस्था के पालन के द्वारा / अपने कामों और प्रयासों के द्वारा धार्मिकता प्राप्त करना था। यहूदी धर्मगुरु इसी बात का लाभ उठाकर लोगों पर आत्मिक शोषण कर रहे थे। इसलिए, मंदिर में व्यापार और लेन - देन हो रहा था जिसे देखकर यीशु ने कहा कि यह डाकुओं का अड्डा बन गया है।

    परन्तु, यीशु इस संसार में परमेश्वर के राज्य को स्थापित करने आया था। वो लोगों को उद्धार देने आया था जो लोगों के कार्यों, व्यवस्था पालन या लोगों के स्व-धार्मिकता पर नहीं परन्तु यीशु के कार्यों पर आधारित था। उसने संसार में आकार हमारे बदले में एक सिद्ध जीवन जिया, क्रूस पर परमेश्वर के कोप को शांत किया और हमारा प्रायश्चित बना। क्रूस पर एक महान अदला बदली हुई जिसके फलस्वरूप हमारे सारे अपराधों को उसने उठा लिया और उसने अपनी धार्मिकता हमें दे दी। अब उसके ऊपर विश्वास करने के द्वारा हम धर्मी ठहराए गए हैं। इसलिए, वो पर्बत अर्थात यरूशलेम पर्बत पर स्थित उस मंदिर की धर्मिव्यवस्था को हटा दिया जाएगा और एक ऐसी धर्मिव्यवस्था स्थापित की जाएगी जो यीशु के कार्य पर आधारित होगी क्योंकि उसने क्रूस पर हमारे स्थान पर अपने प्राण को देकर हमारा मेल परमेश्वर के साथ करा दिया।

इसलिए यीशु के इस कार्य पर विश्वास करके हम जो कुछ मांगेंगे वो हमे दे दिया जाएगा। तो यीशु के इस कार्य पर विश्वास करते हुए हम प्रार्थना में क्या मांग सकते हैं? हमें क्या मांगना चाहिए? “जो चाहो विश्वास से मांगों” का हवाला देकर क्या हम धन, समृद्धि, वैभव इत्यादि मांगेंगे? क्या हम स्वस्थ, संपन्नता, बढ़िया नौकरी, विदेश यात्रा का अवसर, और सांसारिक उन्नति मांगेंगे? नहीं, हम यह मांगेंगे कि हम एक फ़लरहित अंजीर का पेड़ ना बने। हम वो सब कुछ मांगेंगे जो हमें एक फ़लदायक अंजीर का पेड़ बनाएगी। वो सब कुछ मांगेंगे जो हमें एक ऐसा जीवन जीने के लिए आवश्यक है जिससे यीशु प्रसन्न होगा। हम यह मांगेंगे कि हमारी दृष्टि यीशु की सिद्ध धार्मिकता पर बनी रहे और उन हर एक बातों से हटती जाए जो हमारे भीतर स्वधार्मिकता के घमंड को ला सकती है। जब हम ये सब कुछ मांगेंगे, तो ऐसी प्रार्थना का उत्तर निश्चित रूप से हमें मिलेगा।

~by Monish Mitra
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