एक मसीही का धार्मिक पर्वों को मनाना और उनमें सम्मिलित होना

एक मसीही का धार्मिक पर्वों को मनाना और उनमें सम्मिलित होना

यह एक वास्तविकता है कि हम विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों के मध्य में रहते हैं। हम जहां कार्य करते हैं, पढ़ाई करते हैं, वहाँ भी भिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के लोग पाए जाते हैं। उनकी मान्यताएँ हमसे भिन्न होती हैं, वे भिन्न धार्मिक पर्वों को मनाते हैं और कई बार वे हमें उन पर्वों को मनाने के लिए, और उसमें सम्मिलित होने के लिए निमंत्रण भी देते हैं। क्या हम ऐसी परिस्थिति में उनके साथ मित्रता निभाने के लिए, अच्छा सम्बंध बनाए रखने के लिए उनके पर्वों को मना सकते हैं और उनमें सम्मिलित हो सकते हैं? ऐसी परिस्थितियों के मध्य में एक मसीही का उचित प्रतिउत्तर इस लेख के द्वारा दर्शाया गया है।   

सर्वप्रथम, हम इस बात को न भूलें कि अविश्वासियों का उनके सभी पर्वों के पालन करने के पीछे एक धार्मिक महत्व और एक धार्मिक शिक्षा होती है। वह लोग अपने देवी देवताओं के कार्यों को स्मरण करते हुए अपने पर्वों का पालन करते हैं और इसलिए उन पर्वों को  "शुभ या आशीषमय" मानते हैं। इसलिए जब हम उनके पर्वों को मनाते हैं, और उनमें सम्मिलित होते हैं, तो हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनको यह संकेत देते हैं और उनसे सहमत होते हैं कि हम भी उन्हीं कारणों से उन पर्वों को वही आदर और महत्व दे रहे हैं जिन कारणों से वह इन्हें महत्व देते हैं या आशीषमय मानते हैं। हमें समझना होगा कि ऐसी परिस्थितियों में यह मायने नहीं रखता है कि हम व्यक्तिगत रीति से क्या सोचकर उन पर्वों को मना रहे हैं या उनमें सम्मिलित हो रहे हैं। इसके वीपरीत यह मायने रखता है कि ऐसा करने के द्वारा हम उन्हें क्या संकेत दे रहे हैं? 

हमारे द्वारा इन पर्वों को मनाना और उनमें सम्मिलित होना उनके लिए एक प्रमाण बन जाता है कि वास्तव में उनकी आस्था सबसे श्रेष्ठ है और उत्तम है। यीशु के चेले होते हुए, जब हम उन्हें (हो सकता है अज्ञानता में) अपने शब्दों से और व्यावहारिक क्रियाओं से यह भरोसा दिला देते हैं कि उनकी आस्था महान है, श्रेष्ठ है और उत्तम है, तो फिर भविष्य में हमारा उनको सुसमाचार सुनाना व्यर्थ और फलरहित प्रयास बनकर रह जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने ही उनके मन और ह्रदय में इस बात को जड़ पकड़ने के लिए सहायता किया है कि उनकी आस्था महान है, श्रेष्ठ है और उत्तम है। 

एक मसीही होने के कारण हम कुछ बातों पर विचार कर सकते हैं जो हमें एक सटीक निर्णय लेने में मददगार हो सकता है।  

- हमें यह स्मरण रखना होगा कि बाइबल हमें यहोवा परमेश्वर को छोड़ किसी और को ईश्वर मानकर आदर देने और महिमा प्रशंसा करने से मना करती है और उससे दूर रहने के लिए आज्ञा देती है (निर्गमन 20:3-4, 1 यूहन्ना 5:21)। परमेश्वर का वचन हमें यह भी आज्ञा देता है कि हम अपने प्रत्येक कार्यों के द्वारा केवल उसे ही महिमा दें (1 कुरिन्थियों 10:31)। यदि हम इन पर्वों में सम्मिलित होते हैं तो हम अपने परमेश्वर को महिमा नहीं दे सकते हैं। क्योंकि हम यीशु के लहू के द्वारा मोल ले लिए गए हैं इसलिए हमारी देह परमेश्वर के पवित्र आत्मा का मन्दिर है। परमेश्वर ने हमें पाप के दासत्व से छुड़ा लिया है और अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया है (कुलुस्सियों 1:13)। इसलिए अब हमारा स्वामी और राजा केवल यीशु मसीह ही है। 

- यदि कोई हमें इन पर्वों में निमंत्रण देता है तो ऐसी परिस्थिति में हम उन्हें प्रेमपूर्वक अपनी आस्था और विश्वास के विषय में बताएँ। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि आस्था और विश्वास से सम्बंधित उनके और हमारे विचारों में कोई मेल नहीं है और इसलिए हम उनके पर्वों को मना नहीं सकते हैं या उनमें सम्मिलित नहीं हो सकते हैं।

- ऐसे वार्तालाप के समय हमारे शब्दों में नम्रता होनी चाहिए न कि हम उनको तिरस्कार करते हुए अपनी बातों को प्रस्तुत करें। यह सम्भावना है कि जब हम अपनी बातों को रखेंगे तो लोग हमसे सम्बन्ध रखने में रुचि नहीं लेंगे परन्तु उससे हम निरुत्साहित न हों। हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम परमेश्वर को प्रत्येक परिस्थितियों के मध्य में महिमा दे सकें। यह कठिन है पर यह हमारे लिए अच्छा और भला होगा कि हम अपने विश्वास के विषय में लोगों को बता सकें और उनके मध्य में प्रभु के लिए एक उचित साक्षी रख सकें। 

प्रभु यीशु मसीह आप सबकी सहायता करे! 

~ Monish Mitra

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