समस्याओं की वास्तविकता - भाग 3

 प्रिय बहनों, इस ऑडियो सीरीज में मैं फिर एक बार आप सभी का हृदय से स्वागत करती हूँ, हम ने पिछले ऑडियो में पहले और दूसरे कारणों पर बातें की हैं। 

इससे पहले कि हम तीसरे कारण की ओर जाए, मेरा उन बहनों से अनुरोध है़ यदि आप ने पहला और दूसरा ऑडियो नहीं सुना है़ तो तीसरा ऑडियो आपको समझने में परेशानी होगी क्योंकि हरक ऑडियो एक दूसरे से सम्बन्धित है़। एक को बिना समझें दूसरे को समझना कठिन होगा, हम तीसरे कारण पर चर्चा करने वाले है़।

हमारा तीसरा कारण था : "लोगों को खुश करने का प्रयत्न करना।" 

कई बार हम यह महसूस करते है़ कि जब हमारे रिश्तेदार हमारे घर आते है़ तो हम उन्हें प्रसन्न करने में लग जाते हैं, किसी के घर आने पर उनका आदर सत्कार करना गलत नहीं हैं लेकिन जब हम अपने मसीही आचरण के विपरीत कार्य करते है़ तो वह गलत होता है़। 

कई बार यह सब कार्य बहनें डर के कारण करती हैं, बहनें सोचती है़ कि कोई बुरा न मान जाए इसलिए वह सबको प्रसन्न  करने में लग जाती है़। परमेश्वर कभी भी आपको, उनको इस रीति से खुश करने की बात नहीं करता। 

अगर हम इफीसियों की पुस्तक 5:10 पद को देखें, तो उसमें क्या लिखा है़? "परखो प्रभु किन बातों से प्रसन्न होता है़?" वहाँ पर ऐसा नहीं लिखा कि परखो कि लोग किन बातों से प्रसन्न होते हैं। यदि इस पूरे 5 अध्याय को आप पढेंगे तो आपको समझ आएगा कि परमेश्वर किन बातों से प्रसन्न होते हैं। लेकिन परमेश्वर को छोड़कर हम लोगों को प्रसन्न करने में लग जाते है़, परमेश्वर हरक लोगों के भीतरी स्वभाव को जानते हैं हर मनुष्य अलग है़ और उसके खुश होने की सीमा भी अलग अलग है़ जरूरी नहीं कि हम उसकी सीमा या उसकी आशा अनुसार प्रसन्न करें। आप लोगों को कभी भी पूरी तरह से सन्तुष्ट नहीं कर पाएंगे आपको हरक कार्य सन्तुलन में करना चाहिए; जितनी आपकी शक्ति है़, जितना आपके बस में है़ उतना ही करें।

परमेश्वर यदि अपने गुणों को आपको सिखा रहें हैं, यदि उसकी आज्ञा अनुसार आप कार्यों को कर रहे हैं तो वह आपको अनावश्यक कार्यों में नहीं उलझाएँगे। यदि आप 1थिस्सलुनीकियों 4:11 पद को पढ़ें, "और जैसी आज्ञा हमने तुम्हें दी है़, तुम शान्ति पूर्वक जीवन व्यतीत करने की आकांक्षा रखो अपने काम से काम रखो और अपने हाथों से परिश्रम करो" इस पद के अनुसार परमेश्वर चाहते हैं कि हम शान्ति पूर्वक जीवन व्यतीत करें, हमें शान्ति सब के साथ बनाके रखनी हैं। अपने काम में ध्यान देना है़ और परिश्रम करते रहना है़।

आप कहेंगे हम तो शान्ति से रहना चाहते हैं परन्तु लोग ही किसी कारण से शान्ति को भंग करते हैं इसलिए हर एक कार्य सन्तुलन में करना है़। जब लोग अशान्त माहौल को बनाने का प्रयत्न करें तब आप शान्त हों जाइए; उन्हें किसी भी बात की सफाई नहीं दे, उन्हें समझाने की भी कोशिश न करें। कई बार समझाने की कोशिश में बात और बढ़ जाती हैं और जिन बातों से आप बचना चाह रही थी वही हों जाता है़। 

यदि कोई आपके बारे में गलत शब्दों का प्रयोग करें या आप पर उँगली उठाए तो क्रोधित मत होइए बल्कि शान्त हों जाए अपने आपको डिफेंड मत कीजिए, अपना बचाव खुद करने मत लग जाइए, अपना बचाव बहुत सारी बातें रखकर अलग अलग तरीकों से समझाकर करने की कोशिश न करें क्योंकि अगला व्यक्ति आपको समझता होता तो बात यहाँ तक नहीं बढ़ती क्योंकि वह व्यक्ति आपको समझ नहीं पा रहा है़ इसलिए इस तरीके से बात नहीं सुलझीगी। आप अपनी शारीरिक और आर्थिक स्थिति को देखकर ही कार्य करें। 

यदि आप शरीर से कमजोर हैं या बीमार है़ तो प्रभु की ओर से, वचन से आप पर कोई दबाव नहीं कि आप काम करें आपको पूरा हक्क है़ आराम करने का, अपनी शारीरिक दशा को बताने का यदि आप आर्थिक स्थिति से जुँझ रहीं हैं, धन की कमी है़ तो जो आपके पास है़ उसी से लोगों का आदर सत्कार करें; ज्यादा खर्च करने की आवश्यकता नहीं हैं, किसी के लिए कर्ज न लें बल्कि जो भी आप से अपेक्षा रखते हैं उन्हें यह ऐहसास होने दे कि आप इससे ज्यादा उनके लिए नहीं कर पाएंगी। धीरे-धीरे वह समझने लगेंगे। 

यदि आपके तरीके लोगों को खुश करने के लिए वचन से प्रेरित हैं तब तो हों सकता है़ कि लोगों के साथ आपके सम्बन्ध ठीक हों जाए। यदि आपके तरीके संसारिकता से प्रेरित हैं तो कोई भी गारंटी नहीं कि आप उन्हें खुश कर पाए; एक यह भी कारण हों सकता हैं कि जिस व्यक्ति को आप खुश करना चाह रहे हैं उसका सही सम्बन्ध प्रभु से नहीं है़ तो हों सकता है़ आप चाहे कितना भी प्रभु की इच्छा अनुसार कार्य करें वह समझेगा ही नहीं ऐसी परिस्थिति में परमेश्वर की सुनें इसलिए कार्य नंबर 2 में बताया गया "सही सम्बन्ध का परमेश्वर के साथ होना।" यदि आपका सम्बन्ध प्रभु के साथ सही हैं उसके वचनों को पढ़ते हैं, समझते हैं, तो आपको पता चल जाएगा कि कब क्या करना है़। जब ऐसे लोग समस्या खड़ी करें लेकिन आपका सम्बन्ध प्रभु के साथ नहीं हैं तो बहुत कठिन है़ कि आप लोगों को समझकर सही समय पर उन्हें मना करें ना कहे सकें।

परमेश्वर के अनुसार जिन बातों को करना है़ मैं उनमें से कुछ बातों को बताऊँगी।

पहला तथ्य : प्रेम करना किसी को न छोड़े, प्रेम करने का अर्थ उनकी बुराई न करें, उनका बुरा न सोचें।

आप मेरे साथ निकाल लीजिए, 1यूहन्ना 4:11,12,19,20,21।

प्रियों, "यदि परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया तो हमको भी एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए, परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा यदि हम एक दूसरे से प्रेम करें तो परमेश्वर हम में बना रहता है़" (1यूहन्ना 4:11-12)।

"हम इसलिए प्रेम करते है़ क्योंकि उसने पहले हम से प्रेम किया यदि कोई कहे, मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ और अपने भाई से घृणा करें तो वह झूठा है़ क्योंकि जो अपने भाई से जिसे उसने देखा है़ प्रेम नहीं करता तो वो  परमेश्वर से जिसे उसने नहीं देखा प्रेम नहीं कर सकता" (1यूहन्ना 4:19-20)।

"हमें उससे यह आज्ञा मिली हैं कि जो परमेश्वर से प्रेम करता है़ वह अपने भाई से भी प्रेम करें" (1यूहन्ना 4:21)।

दूसरा तथ्य : अपने सामर्थ्य के बाहर कार्य न करें।
तीसरा तथ्य : मुँह से अपशब्द न बोले यानी कि टिप्पणी न करें।

"यदि कोई अपने आपको भक्त समझें और अपने जीभ पर लगाम न लगाए पर अपने हृदय को धोखा दे तो उसकी भक्ति व्यर्थ है़" (याकूब 1:26)।

आप सभी बहनों से यह निवेदन है़ कि याकूब की पुस्तक 3 अध्याय को पूरा पढ़ें।

चौथा तथ्य : घर में लड़ाई-झगड़ा या कोई भी बात हों जाने के बाद आप शान्त मन से सोचे कि क्या आपकी गलती थी यदि आप गलत थी तो प्रभु से क्षमा मांगे और दोबारा न करें लेकिन किसी और की गलती होने पर अपने आपको दोषी न ठहराए। 

प्रभु से प्रार्थना में उन लोगों के लिए समझ मांगे जिनके द्वारा माहौल बिगड़ा। 

"यदि हम अपने पापों को मान ले तो वह हमारे पापों को क्षमा करने में और हमें सब अधर्म से शुध्द करने में विश्वास योग्य और धर्मी हैं" (1यूहन्ना 9)।

पाँचवा तथ्य : अपने मरने की कामना न करें ऐसा न सोचे कि आप किसी लायक नहीं है़।

परमेश्वर आपके बारे में ऐसे विचार नहीं रखता, जब आप उसकी आज्ञओं को मानेंगी, तो परमेश्वर आपकी सहायता करेंगे समस्या से बाहर आने में; परमेश्वर आपके लिए मार्ग तयार करेंगे कि आप परमेश्वर की शान्ति को अपने जीवन और अपने परिवार के सदस्यों के जीवन में देख सकें। 

छठा तथ्य : लोगों की बातों से निराश न हों जाए, अपने मन को लोगों की बातों से न भरें परन्तु वचन से भरें। 

जितना ज्यादा आप वचन पढेंगे उतने ही मन से कड़वाहट बाहर निकलेंगी। मन हल्का होगा और परमेश्वर अपने वचन से आपको हिम्मत देगा; एक नए दिन के लिए इसलिए हिम्मत न हारे। "इसलिए उस पर ध्यान करों जिसने पापियों का अपने विरोध में इतना विरोध सह लिया कि तुम थकर निरुत्साहित न हों जाओ" (इब्रानियों 12:3)।

यीशु मसीह ने स्वंय इन बातों का सामना किया वह भी उन लोगों के द्वारा जिनको यीशु ने स्वंय सृजा; यीशु मसीह का सहना हमें उसकी कमजोरी नहीं दिखाता परन्तु उसका प्रेम, दीनता और हर पापियों को एक और अवसर मिलें ताकि वह हमेशा के लिए अन्धकार में ही रह जाए। 

सातवा तथ्य : गलत सलाह लेने से बचें, गलत लोगों से बचें; गलत सलाह के घातक परिणाम हों सकते हैं।

आठवा तथ्य : हम बहनें बहुत भावुक होती हैं अपनी भावना को नियंत्रण में रखें, किसी के कुछ भी कहने पर सोचने मत लग जाए या उनकी कोई भी बात आपको बुरी न लगें।

नौवा तथ्य : परमेश्वर को धन्यवाद करना न छोड़े, संसार में अन्यजाति के लोगों के पास कोई आशा नहीं परन्तु हमारे पास यीशु नाम की आशा हैं। "इसमें इस प्रकार लिखा है़ यह बातें मैंने तुम से कही है़ कि तुम मुझ में शान्ति पाओगे। संसार में तुम्हें क्लेश होता है़ परन्तु साहस रखो, मैंने संसार को जीत लिया है़" (यूहन्ना 16:33)। 

यीशु मसीह ने हर बात को क्रूस पर जीत लिया हैं, बस हमारा विश्वास करके उसकी आज्ञाओं को मानना बाकी है़। 

प्रभु आप सभी आशिष दें।

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